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पाठ 9
| भावना बत्तीसी
प्रश्न 1: आचार्य अमितगति का व्यक्तित्व-कर्तृत्व लिखिए।
उत्तरः उज्जयनी नगरी के राजा वाक्पतिराज मुंज की राजसभा में प्रतिष्ठा प्राप्त आचार्य अमितगति प्रथितयश सारस्वताचार्यों में से एक हैं। आप विक्रमसंवत् 11वीं शती के बहुश्रुत विद्वान और विविध विषयों के ग्रंथकार आचार्य हैं। आपने अपनी 'धर्म परीक्षा' कृति की प्रशस्ति में अपनी गुरु परम्परा तथा अमरकीर्ति ने अपनी कृति 'छक्कम्मोवएस' में आपकी शिष्य परम्परा को इसप्रकार स्पष्ट किया है - गुरुणांगुरु वीरसेन के शिष्य देवसेन, देवसेन के शिष्य योगसार प्राभृतकार अमितगति प्रथम, इनके शिष्य नेमिषेण, नेमिषेण के शिष्य माधवसेन और माधवसेन के शिष्य प्रस्तुत अमितगति द्वितीय, इनके शिष्य शान्तिषेण, शान्तिषण के शिष्य अमरसेन, अमरसेन के शिष्य श्रीसेन, श्रीसेन के शिष्य चंद्रकीर्ति और उनके शिष्य छक्कम्मोवएस के कर्ता अमरकीर्ति हैं।
आपकी अनेकानेक कृतिआँ मानी जाती हैं। उनमें से कुछ कृतिआँ ये हैं - सुभाषित रत्नसंदोह, धर्मपरीक्षा, उपासकाचार, पंचसंग्रह, आराधना, भावना द्वात्रिंशतिका। ___1. सुभाषित रत्नसंदोह - वि. सं. 1050 की पौष शुक्लपंचमी को मुंजराजा के राज्यकाल में रचा गया यह ग्रंथ सुभाषित रूपी रत्नों का रत्नाकर है। 32 प्रकरण तथा 922 पद्यों में निबद्ध, आध्यात्मिक, आचारात्मक और नैतिक तथ्यों की अभिव्यंजना सुभाषित शैली में करनेवाला यह ग्रंथ सुभाषित नीति साहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
2. धर्मपरीक्षा - व्यंग्य प्रधान शैली में रचे गए संस्कृत साहित्य में यह अपने ढंग की अद्भुत रचना है। इसमें पौराणिक ऊटपटांग कथाओं और मान्यताओं को बड़े ही मनोरंजक रूप में अविश्वसनीय सिद्ध किया गया है। 1945 पद्यों में निबद्ध इस ग्रंथ में आक्रमणात्मक शैली न अपनाते हुए सुझावात्मक शैली द्वारा व्यंग्य और
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग एक /135