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सम्यग्दृष्टि, छद्मस्थ जीवों के एक साथ पारिणामिक, औदयिक, क्षायोपशमिक तथा
औपशमिक या क्षायिक – ये चार भाव पाए जाते हैं। उपशम श्रेणी का आरोहण करनेवाले क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव के एक साथ पाँचों ही भाव पाए जाते हैं। सकल परमात्मामय वीतरागी, सर्वज्ञ अरहन्त परमेष्ठी के एक साथ पारिणामिक, औदयिक और क्षायिक -- ये तीन भाव पाए जाते हैं। निकल परमात्मामय सर्वतः शुद्ध सिद्ध परमेष्ठी के एक साथ जीवत्वरूप पारिणामिक और क्षायिक - ये दो भाव पाए जाते हैं। ___ इसप्रकार विविध जीवों की अपेक्षा कम से कम दो से लेकर अधिक से अधिक पाँचों भाव एक साथ विद्यमान रह सकते हैं।
प्रश्न 21: इस प्रकरण को समझने से हमें क्या लाभ है ?
उत्तरः जीव के असाधारण भावमय पंच भाव वाले इस प्रकरण को समझने से हमें निम्नलिखित लाभ हैं - ____1. पारिणामिक भाव को समझने से हमें यह ज्ञात होता है कि भले ही हमारी पर्याय ने इसे अपनत्व भाव से स्वीकार नहीं करने के कारण अनन्त दुःख भोगे हैं; तथापि यह उनसे पूर्ण अप्रभावित ही रहा है। इसका अनादि-अनन्त ज्ञानानन्द स्वभाव कभी नष्ट नहीं हुआ है। यदि अभी भी इसे अपनत्व रूप से स्वीकार किया जाता है तो जीवन ज्ञानानन्दमय निराकुल हो जाता है।
2. औदयिक भाव समझने से यह ज्ञात होता है कि यद्यपि ये रागादि भाव मेरे असाधारण भाव हैं; परन्तु ये कर्म सापेक्ष वैभाविक भाव हैं । ये मेरे स्वरूप नहीं हैं। वास्तव में मैं इनका कर्ता, धर्ता, हर्ता, भोक्ता नहीं हूँ। इन्हें अपना मानने के कारण ही मैं दुखी हूँ। इनसे सतत भेद-विज्ञान करते हुए अपने परमपारिणामिक भाव में स्थिर होने से ये औदयिक भाव नष्ट होकर मैं पर्याय में भी सुखी हो जाता हूँ।
3. क्षायोपशमिक भाव समझने से यह ज्ञात होता है कि विकृत से विकृत दशा में भी स्वभाव की व्यक्तता का कभी भी पूर्णतया अभाव नहीं होता है । ज्ञान, दर्शन, वीर्य आदि गुणों का स्वाभाविक शुद्ध अंश पर्याय में सदा व्यक्त रहता है। इससे ही जीवत्व की पहिचान होती है तथा यही एकमात्र वह साधन है जिसका सदुपयोग कर हम पर्याय में भी पूर्ण शुद्धता व्यक्त कर सकते हैं।
4. क्षायिक भाव समझने से यह ज्ञात होता है कि यदिअपने परम पारिणामिक भाव में परिपूर्ण स्थिरता हुई तो सदा-सदा के लिए दुःखों का अभाव होकर परिपूर्ण
__.. पंचभाव /108