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________________ 3. क्षायोपशमिक भाव सभी छद्मस्थ जीवों के पाया जाता है । यह भाव मात्र अरहन्त और सिद्ध परमेष्ठिओं के नहीं होता है; शेष सभी मिथ्यादृष्टि, सम्यग्दृष्टि, बहिरात्मा, अन्तरात्मा, श्रावक, साधु, उपाध्याय, आचार्य परमेष्ठी आदि सभी के होता है। 4. क्षायिक भाव सभी सिद्ध परमेष्ठिओं के तो पाया ही जाता है; साथ ही कुछ संसारी जीवों में भी पाया जाता है। यद्यपि यह अभव्यों और मिथ्यादृष्टिओं के तो नहीं होता है; तथापि सम्यक्त्वी और चारित्रवानों में से क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्रवान जीवों के तथा सभी अरहन्तों के नियम से पाया जाता है। 5. औपशमिक भाव मात्र औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्रवानों के ही पाया जाता है। इसप्रकार अपनी-अपनी योग्यतानुसार ये सभी जीवों के पाए जाते हैं। प्रश्न 14: इन पाँचों भावों का काल लिखिए। उत्तरः वास्तव में तो एकमात्र पारिणामिक भाव ही पर्यायों से पूर्णतया निरपेक्ष होने के कारण अनादि-अनन्त है; शेष सभी पर्याय रूप होने से सादि-सान्त ही हैं; तथापि इनमें कुछ विशेष भी है। वह इसप्रकार - पारिणामिक भाव में जीवत्व तथा अभव्यत्व भाव तो अनादि-अनन्त है। दूरानुदूर भव्य अर्थात् अभव्यसम भव्य का भव्यत्व भाव भी अनादि-अनन्त है। शेष भव्यों का भव्यत्व भाव अनादि-सान्त है। औदयिक भाव एक समयवर्ती पर्याय की अपेक्षा तो सादि-सान्त ही है; परन्तु परम्परा की अपेक्षा अभव्य और अभव्यसम भव्य का तो अनादि-अनन्त ही है; शेष भव्य जीवों का अनादि-सान्त है। क्षायोपशमिक भाव एक समयवर्ती पर्याय की अपेक्षा तथा मोक्षमार्गरूप क्षायोपशमिक भाव की अपेक्षा सादि-सान्त ही है । परम्परा से अभव्य तथा अभव्यसम भव्य की अपेक्षा अनादि-अनन्त और शेष भव्यों की अपेक्षा अनादि-सान्त है। __ क्षायिक भाव एक समयवर्ती पर्याय की अपेक्षा सादि-सान्त है तथा परम्परा की अपेक्षा सादि-अनन्त है। इस भाववाला जीव संसार में अधिक से अधिक कुछ कम दो पूर्व कोटि अधिक 33 सागर पर्यन्त रह सकता है। औपशमिक भाव सदैव सादि-सान्त ही है। पंचभाव /102
SR No.007145
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherShantyasha Prakashan
Publication Year2005
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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