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कर्म प्रकृतिओं के उदय का सीधा संबंध जीव के साथ नहीं होने के कारण इन संबंधी औदयिक भाव नहीं होते हैं । इन संबंधी औदयिक भाव तो उपचार से कहे जाते हैं; क्योंकि जब तक इनका उदय रहता है, तब तक सिद्ध दशा व्यक्त नहीं होती है; अपना यथार्थ स्वभाव पर्याय में प्रगट नहीं हो पाता है । शेष 78 प्रकृतिओं संबंधी औदयिक भाव होते हैं । यहाँ उन्हें संक्षिप्त कर, अन्य में गर्भित कर, उनके प्रतिनिधि के रूप में मात्र 21 भेद गिनाए गए हैं।
प्रश्न 11: इन 21 भावों में से किस औदयिक भाव में किस-किस कर्मसंबंधी औदयिकभाव को गर्भित किया गया है ?
उत्तरः गति रूप चार औदयिक भावों में नामकर्म की शेष 27 प्रकृतिओं तथा गोत्र और वेदनीय कर्म की दो प्रकृतिओं संबंधी औदयिक भाव को गर्भित किया है। कषायं रूप चार भावों में चारित्र मोहनीय की प्रत्याख्यानावरण और संज्वलनचतुष्क संबंधी 8 कषाय भावों को गर्भित किया गया है । लिंगरूप 3 भावों में हास्यादि नौ नो कषायरूप भाव गर्भित हैं । मिथ्यादर्शन रूप एक भाव में दर्शनमोहनीय और अनंतानुबंधी चतुष्क संबंधी भाव गर्भित हैं। अज्ञानरूप एक भाव में ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 9 और अंतराय 5 कर्म प्रकृतिओं संबंधी औदयिक भाव गर्भित हैं । असंयतरूप एक भाव में अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क संबंधी भाव गर्भित है । शेष असिद्धत्व एक और लेश्यारूप छह भावों में सामान्यतया आयुष्क, नाम, गोत्र और वेदनीय रूप सभी अघाति कर्म प्रकृतिओं के उदय संबंधी भाव गर्भित हो जाते हैं। इसप्रकार ये 21 भाव समस्त कर्म प्रकृतिओं के उदय संबंधी भावों का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
प्रश्न 12ः पारिणामिक भाव और उसके भेदों का स्वरूप स्पष्ट कीजिए । उत्तरः “द्रव्यात्मलाभमात्रहेतुकः परिणामः - द्रव्य को अपने स्वरूप की प्राप्ति मात्र में कारणभूत परिणाम है । "
“परिणामः प्रयोजनमस्येति पारिणामिकः - जिस भाव का परिणाम ही प्रयोजन है, वह पारिणामिक है ।"
" परिणामे भवः पारिणामिकः - परिणाम में होनेवाला भाव पारिणामिक है। " “परिणामेन युक्तः पारिणामिकः - परिणाम से सहित पारिणामिक है। " तात्पर्य यह है कि जो भाव परिणाममय / स्वभाव रूप है, कर्मादि से पूर्ण निरपेक्ष है, तर्क अगोचर भगवती भवितव्यता से सुनिश्चित है, वह पारिणामिक भाव है। पंचभाव / 100