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अलिंगग्रहण प्रवचन गुण सामान्य है, उसकी भी अपेक्षा नहीं रखती है । इसप्रकार उसकी निरपेक्षता बतलाई है। जो शुद्धपर्यायरूप परिणमित है, वही आत्मा है, आत्मा स्वयं ही शुद्धपर्याय है । इसप्रकार बतलाकर द्रव्यदृष्टि कराई है। सामान्य तथा विशेष के भेदवाला आत्मा सम्यग्दर्शन का ध्येय नहीं है। शुद्धपर्याय, वही आत्मा है; इसप्रकार कहकर अभेददृष्टि कराई है।
इस प्रमाण से यहाँ अलिंगग्रहण का अर्थ - अ-नहीं, लिंग-प्रत्यभिज्ञान का कारण, ग्रहण- त्रिकाली सामान्यज्ञान अर्थात् जिसको ज्ञानसामान्य नहीं है, ऐसा आत्मा अलिंगग्रहण है । इसप्रकार आत्मा त्रिकाली ज्ञान से नहीं स्पर्शित ऐसा शुद्धपर्याय है। आत्मा स्वयं ही शुद्धपर्याय है। आत्मा और शुद्धपर्याय में भेद नहीं है, इसप्रकार तेरे स्वज्ञेय को जान । ऐसे स्वज्ञेय आत्मा को जाननाश्रद्धा करना धर्म है।