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संपादकीय आध्यात्मिक सत्पुरुष गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के निमित्त से इस युग में आचार्य कुन्दकुन्द वास्तविक समाज के सामने आ गये अर्थात् जनसामान्य भी आचार्यश्री कुंदकुंद रचित समयसारादि ग्रंथों का अध्ययन करने लगा है।
प्रवचनसार ग्रंथ का विषय ज्ञानप्रधान, सूक्ष्म, गूढ़ एवं गम्भीर है । इसके दूसरे अध्याय का नाम ज्ञेयतत्त्व प्रज्ञापन है, जिसे जयसेनाचार्य ने सम्यग्दर्शनाधिकार कहा है। इस अधिकार में गाथा क्रमांक १७२ विशेष प्रसिद्ध है। करीब बारह वर्ष पहले मैंने हिन्दी में अलिंगग्रहण प्रवचन नाम से प्रकाशित आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के प्रवचनों का स्वाध्याय किया था। मुझे प्रवचन बहुत अच्छे लगे थे। उस समय से ही इसे पुनः प्रकाशित करने का भाव था। ___ हिन्दी में पहले संस्करण की अपेक्षा इस संस्करण में जो विशेषताएँ हैं, उन्हें मैं पाठकों की जानकारी के लिए कुछ लिखना चाहता हूँ - . (१) इस संस्करण में प्रत्येक बोल की मूल संस्कृत टीका तो दी ही है और साथ में उसका हिन्दी अनुवाद भी दिया है।
(२) प्रत्येक बोल का विभाग स्पष्ट करने का प्रयास किया है; इसलिए फोलिओ में भी पहला बोल, दूसरा बोल ऐसा विभाजन स्पष्ट किया है।
(३) पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के मूल गुजराती प्रवचनों के साथ पूर्ण प्रवचन का मिलान किया है।
(४) बड़े-बड़े परिच्छेद थे, उनको विभाजित करके छोटे-छोटे परिच्छेद बनाये हैं।
(५) प्रश्न और उत्तर ऐसा स्पष्ट विभाजन करके पाठकों को विषय सुलभ बनाने का प्रयास किया है।
(६) सातवें, आठवें आदि बोल में पहले आदि बोल का पुनः विषय आया है, वहाँ बोल-१ इत्यादि शब्दों में उल्लेख किया है।
(७) कुछ विशिष्ट विषय बड़े अक्षरों में दिये हैं।
(८) जहाँ स्पष्टता में कठिनता थी, वहाँ गुजराती प्रवचन अथवा मूल के आधार से सुलभता लाने का प्रयास किया है।
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