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आठवाँ बोल की वृद्धि परपदार्थों में से अथवा शुभराग में से नहीं आती है। वह अपने शुद्ध द्रव्यस्वभाव में से ही आती है, अन्तर परिणमन की एकाग्रता बढ़ते-बढ़ते बाह्य में प्रगट दिखाई देती है। ज्ञान के वैभव का कारण पूर्वाचार्यों की परम्परा के अनुसार क्यों कहा?
प्रश्न : यदि यह कहते हो कि निर्मलता अंतर में से प्रगट होती है तो कुन्दकुन्दाचार्य भगवान ने समयसार गाथा ५ में कहा है कि हमारे स्वसंवेदन ज्ञान का जन्म पूर्वाचार्यों के अनुग्रहपूर्वक उपदेश से हुआ है और आचार्यों की परम्परा से यह वैभव हमें मिला है – ऐसा कैसे कहा ?
उत्तर : जब कोई भी ज्ञानी अपने ज्ञानस्वभाव चेतन के आश्रय से अपने ज्ञान की अत्रुट धारा टिकाये रखता है; तब अपने ज्ञान में निमित्तरूप हुए पूर्व आचार्य कैसे थे, उन निमित्तों का ज्ञान कराते हैं। प्रत्येक आत्मा स्वयं स्वयं का ज्ञानप्रवाह उत्तरोत्तर टिकाये रखता है, तब क्या-क्या निमित्त थे, उनका ज्ञान कराते हैं । जिसप्रकार ज्ञानियों की परम्परा में उत्तरोत्तर ज्ञान टिकाये रखने में संधि है, उसीप्रकार उनके निमित्तों की परम्परा में उत्तरोत्तर संधि बतलाकर निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध का कथन किया है। ज्ञान उपयोग की अचानक वृद्धि का कारण कौन ?
गौतम गणधर, महावीर प्रभु के निकट गये, उनको पहले ज्ञान बहुत हीन था और भगवान के समवशरण में गये, भगवान की वाणी सुनकर बारह अंग और चौदह पूर्व का ज्ञान हुआ। पहले मति-श्रुत ज्ञान था और थोड़े समय में चार ज्ञान के स्वामी हो गये तो इतना सब ज्ञान कहाँ से आया? क्या भगवान की वाणी में से आया? क्या निमित्त ऊपर लक्ष करने से आया? ___किसी जीव को सामान्य मति-श्रुत ज्ञान हो और तत्पश्चात् दो घड़ी में पुरुषार्थ करके एकाग्र होकर केवलज्ञान प्रगट करता है तो इतनी सब वृद्धि कहाँ से आई ? ___ यहाँ भी सुनने से पहले ज्ञान हीन होता है और शब्द और वाणी कान में पड़ने के बाद ज्ञान बढ़ता है, वह वृद्धि क्या वाणी में से आती होगी ?