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________________ आठवाँ बोल ३९ वाणी सुने, इत्यादि शुभभाव करे तो उपयोग सुधरेगा कि नहीं? नहीं सुधरेगा। उपयोग कहीं बाहर से नहीं लाया जाता, वह क्रमशः अंतर में से प्रगट होता है, बाह्य किसी कारण में से प्रगट नहीं होता है, अतः अकारणीय है। इसप्रकार आत्मा के उपयोग की यथार्थ श्रद्धा करना - ज्ञान करना, वह धर्म का कारण है। पाँचवां प्रवचन माघ कृष्ण ६, मंगलवार, दि. २७/२/१९५१ ज्ञानोपयोग निरावलंबी है, ऐसा तू जान। बोल १. आत्मा द्रव्य है, वह स्वयं इन्द्रियों से स्व तथा पर को जाने, उसका ऐसा स्वरूप नहीं है। बोल २. आत्मा स्वयं इन्द्रियों से ज्ञात हो, उसका ऐसा स्वरूप नहीं है। बोल ३. धूम्र द्वारा अग्नि ज्ञात हो, उसीप्रकार आत्मा इन्द्रियों के अनुमान से ज्ञात हो, उसका ऐसा स्वभाव नहीं है। ___ बोल ४. अन्य द्वारा आत्मा केवल अनुमान से ज्ञात हो, वह ऐसा प्रमेय पदार्थ नहीं है। अन्य जीव रागरहित स्वसंवेदनज्ञान द्वारा आत्मा को जाने तो वह ज्ञात हो सकता है। बोल ५. स्वयं अन्य आत्मा को केवल अनुमान से जाने, स्वयं का ऐसा स्वभाव नहीं है, वह स्वसंवेदन से जान सकता है। बोल ६. आत्मा प्रत्यक्ष ज्ञाता है। परपदार्थ की अपेक्षारहित, इन्द्रिय तथा मन के अवलंबनरहित, स्वयं स्वयं को प्रत्यक्ष जाने, ऐसा उसका ज्ञातास्वभाव है। .. बोल ७. छह बोलों में द्रव्य का कथन किया है। सातवें बोल में ज्ञान उपयोग का कथन करते हैं। उपयोग भी ज्ञेय है। उस ज्ञेय का स्वभाव कैसा है, वह कहते हैं -
SR No.007143
Book TitleAling Grahan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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