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अलिंगग्रहण प्रवचन प्रश्न : ज्ञान ज्ञेयों का अवलंबन तो करता है न ?
उत्तर : जब ज्ञान की पर्याय प्रगट होती है तब ज्ञेय होते हैं; इसप्रकार निमित्त का ज्ञान कराया है, परन्तु;
१. जगत में अनन्त ज्ञेय हैं; उनके अवलंबन से ज्ञान होता है; ज्ञान ऐसा पराधीन नहीं है।
२. जीव वर्तमान में ज्ञान करता है। अतः ज्ञेयों को आना पड़ता है, ऐसा भी नहीं है, दोनों स्वतन्त्र हैं।
३. उपयोग उन ज्ञेयों का आधार लेता है तो सुधरता है, ऐसा भी नहीं है; क्योंकि ज्ञान कभी भी ज्ञेयों का आधार नहीं लेता है।
४. परज्ञेय जगत में अनन्त हैं, अत: उपयोग पर को जानने का कार्य करता है, ऐसा भी नहीं है; क्योंकि उपयोग का स्वभाव स्व-पर दोनों का जानने का है, पर है उसके कारण नहीं। उपयोग स्वतंत्र अपने आत्मा के आधार से कार्य करता है। . एकांत पर लक्षी ज्ञान, ज्ञान ही नहीं है।
परपदार्थ को ही मात्र लक्ष में लेकर, पर के अवलंबन से प्रगट होनेवाला ज्ञान, ज्ञान ही नहीं है । निमित्तों के अवलंबन सहित, मन के अवलंबन सहित, इन्द्रियों के अवलंबन सहित, पंचपरमेष्ठी के अवलंबन सहित, शास्त्र के अवलंबन सहित – ऐसे एकांत परलक्षी ज्ञान को ज्ञान ही नहीं कहा है; परन्तु उसे मिथ्याज्ञान कहा है, उसे यहाँ उपयोग में समाविष्ट नहीं किया है। साधकदशा में व्यवहार और निमित्त का स्वरूप
शुद्ध आत्मा ज्ञाता-दृष्टा है, उसकी श्रद्धा-ज्ञान करके जो ज्ञान स्व सन्मुख झुकता है, उसीको यहाँ ज्ञान कहा है। सम्यग्दृष्टि जीवों को जबतक परिपूर्ण वीतराग दशा न हो तबतक शुभराग आता है और सच्चे देव-शास्त्र-गुरु को मानने का विकल्प उठता है। राग की भूमिका होने से पर की ओर लक्ष जाता है; परन्तु देव-शास्त्र-गुरु हैं, इसलिये पर की ओर लक्ष जाता है; ऐसा धर्मात्मा जीव नहीं मानता है।