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________________ ज्ञानस्वभाव-सम्यग्ज्ञान 57 हा हा यह तो ज्ञान की स्वच्छता तथा प्रामाणिकता का ही प्रतीक है। जंगत् में सदृश्यकार्य तो अनेक होते हैं, किन्तु किसी की कृपा की उनमें कोई अपेक्षा नहीं होती। जैसे हमारे पड़ौसी के घर भात बनाया जाय और हमारे यहाँ भात बनाया जाय तो हमने पड़ौसी का अनुकरण करके अथवा पड़ौसी से कुछ लेकर तो अपना भात नहीं बनाया, हमारा भात स्वतन्त्र रूप से अपने नियत समय में हमारी सम्पत्ति से बना है और इसी प्रकार पड़ौसी का भी, दोनों में कोई सम्बन्ध ही नहीं बनता। हाँ, सादृश्य तो दोनों में है, किन्तु सम्बन्ध कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार ज्ञान में कोई ज्ञेय अथवा घट प्रतिबिम्बित होता है तो ज्ञान का घटाकार तो ज्ञान की अपनी शक्ति से अपने नियत समय में उत्पन्न हुआ है, मिट्टी के घट के कारण नहीं; क्योंकि मिट्टी का घट तो पहले भी विद्यमान था, किन्तु ज्ञान का घट पहले नहीं था। ज्ञान ने अपने क्रमबद्ध प्रवाह में अपना घट अब बनाया है और इस घटाकार की रचना में ज्ञान ने मृण्मय घट का अनुकरण नहीं किया है वरन् ज्ञान का घटाकार मृण्मय घटाकार से नितान्त पृथक् ज्ञान का अपने समय का स्वतन्त्र निरपेक्ष उत्पादन है। ज्ञान में घटाकार की रचना, ज्ञान के अनादि-अनन्त प्रवाहक्रम में नियत क्षण में ही हुई है। इसके एक क्षण भी आगे-पीछे की कल्पना एकान्त मिथ्या है। 'ज्ञान के सामने घड़ा है' अतएव घट ही प्रतिबिम्बित हुआ यह बात तर्क और सिद्धान्त की कसौटी पर भी सिद्ध नहीं होती। यदि उसे सिद्धान्ततः स्वीकार कर लिया तो लोकालोक तो सदा ही विद्यमान है, केवलज्ञान क्यों नहीं होता ? पुन: यदि पदार्थ ज्ञान का
SR No.007142
Book TitleChaitanya Ki Chahal Pahal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugal Jain, Nilima Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year2012
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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