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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
भावोंरूप है और पारिणामिकभाव, बन्ध-मोक्ष के कारणरूप क्रिया से रहित है; इसलिए निष्क्रिय है ।
परमपारिणामिकभाव, ध्येयरूप है; ध्यानरूप नहीं ।
औपशमिक आदि तीन भाव, ध्यानरूप हैं, मोक्ष का कारण हैं । औदयिकभाव, परभाव है और बन्ध का कारण है।
वस्तु का ध्रुवस्वरूप, उपजता - विनशता नहीं है । उपजना, विनशना, वस्तु की पर्याय में है ।
ये दोनों धर्म, वस्तु में न हों तो दुःख मिटकर सुख नहीं हो सकता है।
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इस प्रकार ध्रुव को न पहचाने, उसे ध्रुव का लक्ष्य कराते हैं. और पर्याय को न माने, उसे पर्याय बतलाते हैं। दो होकर वस्तुस्वरूप. है, दोनों को जाने बिना सच्चा ज्ञान नहीं होता और मोक्षमार्ग नहीं सधता है ।
यह बात बहुत बार प्रवचन में आती तो अवश्य है, बहुत न्याय आते हैं, उसमें गम्भीररूप से यह सब आता है परन्तु सुननेवाला उसकी गम्भीरता को पकड़ ले तो ख्याल में आवे, वरना ऊपर - ऊपर से सुनकर धारणा कर ले परन्तु यदि अन्दर की गम्भीरता ख्याल में न ले तो वास्तविक रहस्य समझ में नहीं आता है । श्रीवा अपने अन्दर मेहनत करके गम्भीरता से पकड़े, तब वास्तविक रहस्य लक्ष्य में आता है और आत्मा का लाभ होता है, अर्थात् अनुभव होता है।
इस प्रकार आत्मा के ज्ञायकस्वभाव का बहुत प्रकार से वर्णन किया अब इस ३२० गाथा की आध्यात्मिक पारायण पूर्ण होने को