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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 239 मिटाना, सच्ची समझ प्रगट करना, ध्रुवरूप से कायम टिका रहना - ऐसा उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप वस्तु सिद्ध होती है। सर्वज्ञ वीतराग परमेश्वर ने ऐसा वस्तुस्वरूप जानकर आत्मा को साधा और केवलज्ञान प्रगट किया; ज्ञान-आनन्द की परिपूर्ण लक्ष्मी अन्तर स्वभाव में भरी हुई थी, वह पर्याय में प्रगट की और फिर इच्छा बिना वाणी में भी वह स्वरूप जगत को बतलाया। आत्मा की साधना करते-करते बीच में पूर्णता की भावना के विकल्प में जो वाणी बँधी और फिर विकल्प तोड़कर केवलज्ञान होने पर उस वाणी का उदय आया, तब असंख्य प्रदेशों से अमृत वाणी खिरी, उसमें जगत् को पूर्णता की प्राप्ति का मार्ग बतलाया और समवसरण में श्रोताओं ने वह मार्ग झेलकर, आत्मा की समझ की। भगवान ने जिस स्वरूप उपदेश किया, वही वीतरागी सन्तों ने बतलाया है और उसका ही यह उपदेश है। ___जीव के पाँच भाव में पारिणामिकभाव को कारण-कार्यरहित निष्क्रिय कहा है और उसका अवलम्बन करनेवाली पर्यायरूप जो परमात्मभावना है, उसे मोक्षमार्ग की क्रिया कहा है। आत्मा, द्रव्यपर्यायरूप दोनों स्वभाववाली वस्तु सिद्ध की है। अकेले ध्रुव में कारण-कार्य नहीं होता, अकेले क्षणिक में कारण-कार्य नहीं होता; ध्रुव को अवलम्बन करके प्रवर्तमान पर्याय, मोक्ष-कारण है। आत्मा में क्रिया होती है? हाँ; आत्मा में शुद्धस्वरूप की भावनारूप जो क्रिया है, वह मोक्ष की क्रिया है। रागादिभाव बन्ध के कारणरूप क्रिया है। शुद्ध आत्मा की भावनारूप सम्यग्दर्शनादि मोक्ष के कारणरूप क्रिया है। उसमें बन्ध के कारणरूप क्रिया, वह औदयिकभावरूप है; मोक्ष के कारणरूप क्रिया, वह औपशमिकादि
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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