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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
प्रत्येक आत्मा सत् है । अनन्त आत्माएँ मोक्ष को प्राप्त हुए हैं और अनन्त आत्माएँ संसार में हैं, तथापि शक्तिस्वभाव समस्त आत्माओं का समान है। वर्तमान क्षणिक अवस्था मलिन है, उसे न देखकर ध्रुवतत्त्व को देखो तो उसमें दुःख या विकार है ही नहीं। उसके सन्मुख जो पर्याय हुई, उसमें भी दुःख या विकार नहीं है। वह तो स्वभाव के लक्ष्य से आनन्दरूप हुई है। ऐसी दशा प्रगट हुए बिना मोक्षमार्ग नहीं होता है। मैं शुद्ध चिदानन्द अखण्ड तत्त्व हूँ -- ऐसा अन्तर अनुभव, वह मोक्ष की क्रिया है। उसी समय ध्रुवभाव अक्रिय है, इस प्रकार अक्रियपना तथा क्रिया ये दोनों वस्तु में एक साथ हैं।
भाई! ऐसा मनुष्य शरीर तो अनन्त बार मिला और छूटा है। यह शरीर कहीं नया नहीं है; अनन्त बार ग्रहण करके छोड़े हुए परमाणु फिर से इस शरीररूप हुए हैं। इनसे भिन्न तेरा शुद्ध चिदानन्दस्वरूप क्या है, उसकी पहचान कर! वह नवीन है। अमुक शब्दों के अर्थात् अरहन्त, सहजात्मस्वरूप इत्यादि के जाप जपा करे और विकल्प किया करे परन्तु उसके वाच्यरूप-ध्येयरूप शुद्ध आत्मा स्वयं अन्तर में कैसा है ? उसे ध्यान में न ले, तब तक सच्चा कल्याण नहीं होता है। तेरा ध्रुव शाश्वत्पना तथा परिवर्तनपना दोनों तुझमें समाहित होते हैं। बदलने की अवस्था कहीं अन्यत्र - और ध्रुव अपने में - ऐसे दो भाग नहीं हैं परन्तु एक वस्तु में एक
साथ दोनों भाव अर्थात् दोनों धर्म रहे हुए हैं, उन्हें परस्पर कथञ्चित् भिन्न कहा है।
____ मात्र बदलना / पर्याय का पलटना, वह कहीं दोष नहीं है; - पर्याय का पलटना तो सिद्ध को भी हुआ करता है, वह उपाधि नहीं