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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 207 . शक्ति, अर्थात् द्रव्य का मूलस्वभाव; और व्यक्ति, अर्थात् पर्याय । चार भाव व्यक्तिरूप है और पारिणामिकभाव शक्तिरूप है। वस्तु में तीनों काल परिणमन है परन्तु वह पर्याय अपेक्षा से है। बन्ध-मोक्ष सम्बन्धी कारण-कार्य पर्याय में है; द्रव्य में नहीं, और पर में भी नहीं। आत्मा के कौन से भाव, बन्ध-मोक्ष के कारण हैं? - यह समझे बिना किस भाव को छोड़ना और किस भाव का सेवन करना? - इसका पता नहीं पड़ता है। सत्य वीतरागमार्ग में भी तीन भाव, मोक्ष के कारण कहे गये हैं – ऐसा सत्य मार्ग जिसे समझ में भी न आवे, वह सत्य के मार्ग में गति किस प्रकार करेगा? __ आत्मा का स्थायी स्वभाव और उसके आश्रय से होनेवाला मोक्षमार्ग समझाकर आचार्य भगवन्तों ने ज्ञान का खजाना खोल दिया है। हे भाई! ले... ले...! तेरा चैतन्य खजाना तू ले!! तेरे इस खजाने में कहाँ कमी है ! अन्दर उतरकर उसमें से चाहिए उतना ले - सम्यग्दर्शन ले, सम्यग्ज्ञान ले, मुनिदशा ले, केवलज्ञान ले, और मोक्ष ले... सदा काल उसमें से पूर्ण ज्ञान और आनन्द लिया ही कर... तो भी तेरे खजाने में कमी आवे ऐसा नहीं है। तेरा आत्मा मोक्ष के खजाने से भरपूर है, 'तू है मोक्षस्वरूप' - ऐसे स्वभाव को अनुभव में लिया, वहाँ मोक्षदशा होने में क्या देरी! और वहाँ मोक्ष का सन्देह क्या! उसे तो स्वभाव में से मोक्षदशा होने की नि:शंक झंकार आ गयी... सम्यग्दर्शन होते ही मोक्ष के वाद्ययन्त्र बज गये... जिसने आत्मा में शक्तिरूप मोक्ष देखा, उसे व्यक्तिरूप मोक्ष हुए बिना नहीं रहता है। देखो! यह अन्दर की बात है; अन्दर, अर्थात् यह अपने
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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