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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
परमात्मा के सन्मुख होने से, औपशमिक आदि तीन निर्मलभाव प्रगट होते हैं, वह मोक्ष का कारण है - ऐसा जानना चाहिए।
इस प्रकार आत्मा के पाँच भावों में से मोक्ष का कारण बतलाया । अब, जो मोक्ष का कारण बतलाया, वह मोक्ष, शक्तिरूप है या व्यक्तिरूप है ? इस सम्बन्धी स्पष्टीकरण करते हैं ।
जो शक्तिरूप मोक्ष है, वह तो शुद्धपारिणामिक है, प्रथम से ही विद्यमान है, यह तो व्यक्तिरूप मोक्ष का विचार चल रहा है। आत्मा के पाँच भावों में तो अलौकिक स्पष्टता आ जाती है.... आत्मा में त्रिकाली द्रव्यस्वभाव, जो कि शक्तिरूप है, उसमें अशुद्धता नहीं है; वह तो सदा ही शुद्ध है, अर्थात् मुक्तस्वरूप ही है । वह पारणामिकभावरूप तो पहले से ऐसा ही है, उसमें कहीं नया करनापना नहीं है; नया कर्तव्य तो पर्याय में है, अर्थात् व्यक्तिरूप मोक्ष नया होता है, इसलिए कारण भी उस व्यक्तिरूप मोक्ष में होता है, शक्ति में कोई कारण नहीं है क्योंकि वह कार्यरूप नहीं है ।
राग-द्वेष और कर्मबन्धन तथा उनके अभावरूप वीतरागता वह मोक्ष, पर्याय में होता है । शक्तिरूप मोक्ष, पारिणामिकभावरूप त्रिकाल है और व्यक्तिरूप मोक्ष, क्षायिकभाव से सादि - अनन्त है (यहाँ एक जीव की अपेक्षा से सादि - अनन्त समझना चाहिए)। शक्ति यदि स्वयं अशुद्ध हो तो आत्मा की शुद्धता कभी हो ही नहीं सकती। यदि पर्याय में भी अशुद्धता न हो तो उसका अभाव करके मोक्ष का उपाय करना नहीं रहता । पर्याय में अशुद्धता है और वह मिटाकर मोक्षदशा प्रगट करनी है, वह कैसे प्रगट हो ? कि द्रव्य में शक्तिरूप मोक्षस्वभाव विद्यमान है, उसका भान करने से पर्याय में वैसी मोक्षदशा व्यक्त होती है ।