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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
का कारण होते हैं - ऐसा सिद्ध करने के लिए यहाँ पर्याय में कारण-कार्य बतलाया है, वरना तो उस-उस समय की पर्याय, शुद्धद्रव्य का अवलम्बन करके स्वयं शुद्धरूप प्रगट होती है। पूर्व पर्याय में से वह नहीं आती परन्तु पूर्व में इतनी शुद्धिपूर्वक ही पूर्ण शुद्धता होती है; इसलिए उसमें कारण-कार्यपना कहा है और उससे विरुद्ध भावों का निषेध किया है; इस प्रकार मोक्ष को साधने के लिए सच्चा कारण क्या है ? किस कारण से मोक्ष सधता है ? वह बतलाया है ।
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त्रिकाली भावरूप ध्रुवद्रव्य यदि मोक्ष का कारण होवे तो मोक्षदशारूप कार्य भी सदा होना चाहिए क्योंकि द्रव्य तो सदा है परन्तु मोक्षमार्ग तो सदा नहीं है, वह तो नया प्रगट होता है; इसलिए उसका कारण, द्रव्य नहीं परन्तु पर्याय है । द्रव्य सदा शुद्ध है, उसका भान करके पर्याय ने जब उसका अवलम्बन लिया, तब वह पर्याय शुद्ध हुई और वही मोक्ष का कारण हुई; इस प्रकार द्रव्य - अंश और पर्याय- अंशरूप स्वतः सिद्ध वस्तु है, उसमें अभेदरूप से द्रव्य को भी शुद्ध का कारण कहते हैं क्योंकि पर्याय उसका अवलम्बन करके शुद्ध हुई है; उसे निमित्त का या राग का अवलम्बन नहीं है।
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यह परमेश्वर के दरबार में प्रवेश करने की बात है । परमेश्वर के दरबार में प्रविष्ट हों, उसे कैसे भाव होते हैं ? उनकी यहाँ पहचान करायी है और वे भाव कैसे प्रगट होते हैं ? यह भी बतलाया है । यह आत्मा स्वयं तीन लोक का नाथ चैतन्य परमेश्वर है, उसकी शक्ति में अनन्त परमात्मवैभव भरा है, उसमें से अनन्त सिद्धदशा प्रगट होने की सामर्थ्य है - ऐसे आत्मस्वभावरूप निज