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________________ 190 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा * शुद्धात्म-अभिमुखपरिणाम, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। .... * शुद्धात्मा के ध्यानरूप मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। * शुद्धोपयोग, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। * वीतरागभाव, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। - इस प्रकार मोक्षमार्ग के भाव में कहीं राग का अवलम्बन नहीं; अपने परमस्वभाव का ही अवलम्बन है। राग तो उदयभाव है। यदि राग के आधार से उपशमादिभाव होते हों, तब तो दोनों पृथक् नहीं रहें। भगवान आत्मा अतीन्द्रिय आनन्दरस का झरना, शान्तरस का सरोवर है। उसमें एकाग्र होने पर जो दशा प्रगट हुई, वही मोक्षमार्ग है। ऐसी शुद्धवस्तु के अनुभव बिना तीन काल में भव का अभाव नहीं हो सकता है। __ अरे! ऐसा मार्ग सुनकर भी जीव पुकार करते हैं कि हमारा व्यवहार उड़ जाता है... पुण्य उड़ जाता है ! परन्तु जरा धीरजवान होकर सुन, भाई! - * क्या राग होवे तो वीतरागता होती है ? * क्या व्यवहार के अवलम्बन से निश्चय होगा? * क्या दोष के द्वारा निर्दोषता प्रगट होगी? - अरे! यह किसके घर की बात! राग से वीतरागता कभी नहीं होती; राग के अभाव से वीतरागता होती है। निश्चयस्वभाव के अवलम्बन से ही निश्चयमोक्षमार्ग होता है, राग तो दोष है; उसके द्वारा निर्दोषता नहीं होती परन्तु निर्दोषस्वभाव के अनुभव से ही
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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