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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 189 मोक्षमार्ग है। जैसे, गुरु की सेवा, धर्म का श्रवण आदि शुभभाव है; वैसे ही जिनदेव के दर्शन-पूजन भी शुभभाव है।शुभ को शुभरूप से जानना चाहिए और शुद्धता की धारा इनसे पृथक् है, उसे पहचानना चाहिए। यह तो सर्वज्ञ वीतराग का अलौकिकमार्ग है। इसमें द्रव्यपर्याय निश्चय-व्यवहार शुद्ध और शुभ-पुण्य और पाप सबका स्वरूप जैसा है, वैसा पहचानना चाहिए और उसमें से अपना हित किस प्रकार है? – इसका विवेक करना चाहिए। एक भूमिका में निर्मलता होवे, वह अलग; और राग होता है, वह अलग है; दोनों का मिश्रण नहीं है। व्यवहार के स्थान में व्यवहार होता है परन्तु निश्चयस्वभाव का अवलम्बन करनेवाले को अन्तर में व्यवहार का अवलम्बन नहीं रहता है। ____ * निश्चयस्वभाव-आश्रित मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। * निज परमात्मा की भावना, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। ___ * औपशमिक आदि भाव, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। * सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। * शुद्ध उपादानकारण, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है। * भावश्रुतज्ञान, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अवलम्बन नहीं है।
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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