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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा 191 निर्दोषता होती है - ऐसा स्पष्ट मार्ग.... इसमें कहीं गड़बड़ चले - ऐसा नहीं है। शुद्धपारिणामिकभावरूप द्रव्य में कारण-कार्यपने की क्रिया नहीं है परन्तु उसकी सन्मुखता से प्रगट हुई पर्याय - जो कि उपशम, क्षयोपशम या क्षायिकभावरूप है - वह मोक्ष का कारण है। यहाँ कारण-कार्य दोनों पर्याय में हैं; द्रव्य में नहीं। पर्याय को अभेद करके कहें, तब उस पर्यायरूप परिणमित आत्मा, मोक्ष का कारण कहलाता है। पर्याय को द्रव्य का आश्रय है; द्रव्य की सन्मुखता से उसके आश्रय से हुई पर्याय, मोक्षमार्ग है; उसमें राग का अभाव है। निर्मलपर्याय में मोक्ष का साधन होने की सामर्थ्य है; राग में वैसी सामर्थ्य नहीं है। पर्याय भले ही क्षणिक है परन्तु उसमें भी ऐसी ताकत है.... पर्याय, अर्थात् तो मानो कि कुछ ही नहीं - ऐसा नहीं है। यहाँ तो उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं सत् सिद्ध करना है। जैसे द्रव्य, सत् का अंश है, वैसे ही पर्याय भी सत् का अंश है, वह भी वस्तु में स्वतःसिद्ध है, वह कहीं असत् नहीं है। सत् वस्तु द्रव्यरूप रहकर प्रति समय नयी-नयी अवस्थारूप उपजती है और पुरानी पर्याय का व्यय होता है - ऐसा सत् वस्तु का स्वरूप है। शास्त्रकारों ने जहाँ जिस अपेक्षा से जो कहा है, वह यथार्थ है, उसमें कहीं विरोध नहीं है। भगवान! तू द्रव्यरूप से ध्रुव है और तेरी अवस्था बदलती है; उस अवस्था में मोक्षमार्ग और मोक्ष है, ध्रुव में नहीं है। जो द्रव्य अंश है, वह पर्याय अंशरूप नहीं हो जाता और जो पर्याय अंश है, वह त्रिकाली द्रव्य अंशरूप नहीं हो जाता; दोनों अंश, दोनों धर्म एक वस्तु में एक साथ हैं । इस प्रकार दो अंशरूप सम्पूर्ण वस्तु
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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