SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 186 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा नहीं है। रागरहित आत्मा, राग द्वारा ज्ञात कैसे होगा? वह तो ज्ञान द्वारा ही ज्ञात होगा। आत्मा स्वयं रागरहित है, और उसके आश्रय से जो मोक्षमार्ग प्रगट हुआ है, वह भी रागरहित है। प्रश्न - राग तो दसवें गुणस्थान तक होता है, उसका अभाव तो ग्यारहवें-बारहवें गुणस्थान में होता है और मोक्षमार्ग की शुरुआत तो चौथे गुणस्थान से होती है - तो मोक्षमार्ग को रागरहित कैसे कहा है? उत्तर - जैसे जगत् में जड़ पदार्थ हैं परन्तु आत्मा में तो उनका अभाव ही है; उसी प्रकार नीचे के गुणस्थानों में राग होता है परन्तु साधक का जो निर्मलभाव है, उसमें तो उस राग का सर्वथा अभाव ही है। साधक की निर्मलपरिणति और राग - इन दोनों को एकत्व नहीं परन्तु भिन्नत्व है। उसमें निर्मलपरिणति, मोक्षमार्ग है और राग, मोक्षमार्ग नहीं है। इसलिए मोक्षमार्ग तो चौथे गुणस्थान में ही रागरहित ही है। शुद्धता की धारा और राग की धारा, दोनों भिन्न है। औपशमिकभाव और औदयिकभाव दोनों भिन्न हैं। शुद्धता की धारा मोक्ष की ओर जाती है तथा राग की धारा बन्ध की ओर जाती है। इस प्रकार मोक्षमार्ग तीनों काल रागरहित ही है। दूसरे स्थूल राग की तो क्या बात.... परन्तु एक द्रव्य में अनन्त गुण हैं - ऐसा गुण-गुणी के भेदरूप विकल्पों का भी, आत्मा की निर्मलदशा में अभाव है – 'ऐसा मार्ग वीतराग का कहा श्री भगवान।' देखो, यह मोक्ष का मार्ग, भाई! यह तो जिसे जन्म-मरण के दुःख की थकान लगी हो और उससे छूटने के लिए आत्मा के अनुभव की धगश जगी हो - ऐसे आत्मार्थी के लिए बात है। बाकी संसार के विषयों में जिसे लहर लगती हो और उनमें से
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy