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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
सम्यक्त्व प्रगट होने के काल में, तथा तत्पश्चात् भी किसी-किसी समय चौथे गुणस्थान में शुद्धोपयोग होता है। इसके अतिरिक्त काल में भी जितनी शुद्धपरिणति हुई है, उसका नाम भावना है और वह मोक्ष का साधन है। वह भावना किसे भाती है? वह शुद्ध पारिणामिकभाव को विषय करती है, अर्थात् उसे भाती है – उसमें तन्मय-एकाग्र होती है। ___ कोई ऐसा कहता है कि चौथे गुणस्थान में शुद्धोपयोग होता ही नहीं -- तो उसे भगवान के मार्ग का पता नहीं है; सम्यक्त्व क्या चीज है ? इसका भी उसे पता नहीं है। बापू! शुद्धोपयोग के बिना तुझे भगवान का मार्ग हाथ नहीं आयेगा। शुद्धता के बिना अकेले राग से तू मोक्षमार्ग मान ले तो यह बात वीतराग भगवान के मार्ग में नहीं चलती है। चौथे गुणस्थान में उपशम सम्यग्दर्शन, शुद्धोपयोगपूर्वक ही होता है - यह सिद्धान्त का नियम है। शुभराग से सम्यग्दर्शन हो जाए - ऐसा कभी नहीं होता है। परमात्मस्वभाव की सन्मुखतारूप भाव, वह भावना है; वह राग का अवलम्बन करनेवाली नहीं है; अन्तर्मुख शुद्ध चैतन्य परमभाव को ध्येय बनाकर, उसका ही अवलम्बन करनेवाली है - उसमें एकाग्र होती है, वह शुद्ध उपादानरूप मोक्ष का कारण है। वह पर्यायरूप है, इसलिए वह मोक्ष का कारण है; शुद्ध पारिणामिकभाव तो द्रव्यरूप है, उसमें कारण-कार्यपना नहीं है। बन्ध-मोक्ष के कारणरूप परिणाम, वह पर्याय है। द्रव्य स्वयं बन्ध-मोक्ष का कारण नहीं होता है; वह तो तटस्थ ध्रुवभाव से एकरूप है। वह स्वयं भावनारूप नहीं परन्तु भावना के विषयरूप है - ध्येयरूप है।
किसकी भावना से मोक्ष प्रगट होता है ? अपने शुद्धस्वभाव