SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 180 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा भाव हूँ, अनन्त शक्तियाँ निर्मलरूप से उल्लसित होती है। इसमें उनका अलौकिक वर्णन किया है। ..जैसे, शुद्धपर्यायरूप मोक्षमार्ग को अनेक नामों से पहचान करायी है, वैसे ही शुद्धद्रव्य की भी अनेक विशेषणों से पहचान करायी है। जैसे कि - * एक ज्ञायकभाव; * सर्वविशुद्ध पारिणामिक परमभाव; शुद्ध उपादानभूत (त्रिकाली); शुद्ध द्रव्यार्थिकनय का विषय; बन्ध-मोक्ष के परिणाम से शून्य; * शुद्ध जीवत्वशक्तिलक्षण पारिणामिकपना; त्रिकाल निरावरण; * सहज शुद्ध पारिणामिकभाव; निज परमात्मद्रव्य; * शुद्धात्मद्रव्य; * शक्तिरूप मोक्ष; * निष्क्रियभाव; * ध्येयरूप; सकल निरावरण अखण्ड एक प्रत्यक्ष प्रतिभासमय; * उत्पाद-व्ययरहित ध्रुवभाव - इत्यादि अनेक नामों द्वारा शुद्ध आत्मद्रव्य पहचाना जाता है। नाम तो कुछ भी दो परन्तु अन्दर अपने भावश्रुतज्ञान द्वारा आत्मा
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy