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________________ 178 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा है। आत्मा अन्तर में गहरा है, वह राग के विकल्पों में आवे - ऐसा नहीं है। इस प्रकार आत्मा के पाँच भाव सम्बन्धी और उसमें द्रव्य -पर्याय सम्बन्धी बहुतं विवेचन हुआ, अब उसका निष्कर्ष, अर्थात् सार निकालते हैं। उसमें कौन-सा भाव मोक्ष का कारण निश्चित हुआ? – यह बतलाते हैं। शुद्ध पारिणामिकभाव की भावनारूप जो औपशमिक आदि तीन भाव हैं, वे समस्त रागादिरहित शुद्धउपादानकारणरूप होने से मोक्ष का कारण है – ऐसा सिद्ध हुआ। देखो, यह मोक्ष का कारण बतलाते हैं। मोक्ष के कारणरूप आत्मा के भाव को इस गाथा में अनेक प्रकार से बतलाया है। . * अकारक-अवेदक – ऐसा जो ज्ञानमात्र भाव, वह मोक्ष का कारण; * अभेद से 'शुद्धज्ञान परिणत जीव' उसमें मोक्षमार्ग आ गया; * शुद्ध उपादानरूप से कर्म का अकर्ता - ऐसा भाव, वह मोक्षमार्ग; * सर्वविशुद्ध पारिणामिक परमभाव का ग्रहण, वह मोक्षमार्ग; * तात्पर्यवर्ती का लक्षण शुद्धात्म अनुभूति – यह अनुभूति, वह मोक्षमार्ग; : ___ * औपशमिक-क्षायोपशमिक-क्षायिक ये तीनों भाव मोक्ष का कारण; ___ * भव्यत्वशक्ति की व्यक्ति अर्थात् सम्यक्त्वादि की प्राप्ति, वह मोक्षमार्ग;
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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