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________________ 168 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा हैं, उन सबको भी परस्पर लक्षण भेद है तथा द्रव्य और पर्याय को भी परस्पर लक्षण भेद है । द्रव्य का लक्षण, ध्रौव्यता है; पर्याय का लक्षण, उत्पाद - विनाश है। वस्तु, द्रव्यरूप से कायम रहकर अवस्था का रूपान्तर करती है। यदि पर्याय में रूपान्तर / परिणमन न होता हो तो दुःखदशा मिटाकर, सुखदशा करना नहीं हो सकेगा। वर्तमान में दुःख है, वह मिटाना चाहता है और सुख नहीं है, उसे प्रगट करना चाहता है, उसमें ही पर्याय के परिवर्तन का स्वीकार आ जाता है। दुःख है, वह बदल ही नहीं सकता ऐसा माने तो उसके नाश का उपाय किसलिए करेगा ? वस्तु में अनादि से बदलने का स्वभाव है, और टिकने का स्वभाव भी है। पर्याय का बदलना, वह कोई उपाधि नहीं है परन्तु टिकना और बदलना, अर्थात् ध्रुवता और उत्पाद -व्यय ऐसा वस्तु का स्वभाव ही है । पर्याय का पलटना तो सिद्ध में भी है। प्रत्येक जीव को अनादि काल से प्रति समय, पर्याय तो पलटती ही आती है परन्तु अपने स्वभाव को भूलकर अनादि से अकेले विकार में ही बदलता आता है; इसलिए जीव दुःखी है। अपना ध्रुवस्वभाव शुद्ध है, उसके आश्रय से परिणमे तो अशुद्धता बदलकर शुद्धता होती है। शरीरादि जड़पदार्थ तो आत्मा से पृथक् जड़रूप ही परिणमित हो रहे हैं । उन्हें आत्मा परिवर्तित नहीं करता, वे उनके कारण स्वयं परिवर्तित होते हैं; आत्मा के कारण नहीं । --- जड़ के उत्पाद-व्यय-ध्रुव, जड़ में हैं और आत्मा के उत्पाद -व्यय-ध्रुव, आत्मा में हैं। देहरूपी डिब्बी में स्थित, परन्तु देह से भिन्न चैतन्यस्त्न कैसा है ? - यह उसकी बात है । जिस समय वह
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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