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________________ ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा की बात समझ में क्यों नहीं आयेगी ? आठ-आठ वर्ष के बालक भी ऐसा निजस्वरूप समझ-समझकर उसमें लीन होकर, अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान को प्राप्त हुए हैं । जहाँ आत्मा जागृत हुआ और केवलज्ञान लेने को तैयार हुआ, वहाँ आत्मा का स्वरूप सम्पूर्णत: उसे समझ में आता है.... और केवलज्ञान लेता है । इसलिए 'मैं नहीं समझ सकता' - यह जात मन में से निकाल डालना चाहिए। भाई ! तुझे समझ में आये - ऐसा है, बापू ! 167 I देख ! तू ज्ञानस्वरूप आत्मा है । घर इत्यादि तो तुझसे भिन्न, शरीर भिन्न, कर्म भिन्न और रागादि परभाव भी तेरे ज्ञानस्वरूप से भिन्न उसमें क्या नहीं समझ में आये ऐसा है ? अब, ऐसे - आत्मा का ज्ञान करने पर अन्दर में जो निर्मलदशा प्रगट हुई, वह पर्याय और द्रव्य, दोनों एकान्त से एक नहीं हैं; उनमें कथञ्चित् भिन्नता भी है यह बात चलती है। वस्तुरूप से दोनों एक, क्योंकि एक ही वस्तु के दोनों अंश हैं परन्तु उनमें द्रव्य, वह ध्रुव अंश है और पर्याय, वह उत्पाद - व्ययरूप अंश है - इस अपेक्षा से दोनों भिन्न हैं । जिस प्रकार एक घर में रहनेवाले सब लोग यदि सर्वथा एक हों तो एक के मरने से सब मर जाना चाहिए; इसी प्रकार चैतन्यवस्तु के घर में रहनेवाले द्रव्य और पर्याय दोनों यदि सर्वथा एक हों तो एक पर्याय मरने पर पूरा आत्मा ही मर जाएगा। मर जाना, अर्थात् व्यय होना। पर्याय मरने से द्रव्य मर नहीं जाता; वह तो ध्रुवरूप जीवित रहता है । उत्पाद, वह जन्म; व्यय, वह मरण; ध्रुवतारूप टिकना, वह शाश्वत् जीवन - इस प्रकार द्रव्य और पर्याय को लक्षणभेद से कथञ्चित् भिन्नता है। वैसे तो एक द्रव्य में अनन्त धर्म
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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