________________
162
ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
जो ध्यानरूप मोक्षमार्गपर्याय है, वह भावनारूप है। द्रव्य तो परमात्मभावरूप है और पर्याय, उसकी भावनारूप है। परमात्मभावना, वह मोक्षमार्ग है। इस भावना को औपशमिकादि तीन भाव लागू पड़ते हैं और जो परमात्मभाव त्रिकाल है, वह पारिणामिकभाव है। पारिणामिकभाव सदा रहता है परन्तु उसकी भावना सदा नहीं रहती; भावना के फलरूप मोक्षदशा प्रगट हुई, वहाँ भावनारूप दशा नहीं रहती है। यह भावना कहीं विकल्परूप नहीं थी; विकल्प तो उदयभाव में गया और यह भावना तो औपशमिकादि तीन भावरूप है। ___ मैं कब मुनि होऊँगा! मैं कब केवलज्ञान प्रगट करूँगा! ऐसे सुविकल्प उत्पन्न हों, वह कहीं यहाँ कथित भावना नहीं है परन्तु विकल्परहित निर्मलपरिणति अन्तर में जितनी एकाग्र हुई, उतनी भावना है और वह मोक्ष का कारण है। अहो! मोक्ष के कारणरूप जो भाव हैं, उसका नाम भावना है।
शाश्वत् पारिणामिकभावरूप परमात्मा के सन्मुख एकाग्र परिणति को भावना कहो, शुद्धोपयोग कहो, या मोक्षमार्ग कहो.... परन्तु वह पर्याय है। सम्पूर्ण भगवान आत्मा, उस पर्याय जितना नहीं है । सम्यग्दर्शन, वही आत्मा है; जितना सम्यग्दर्शन है, उतना ही आत्मा है अथवा अनुभूति, वह आत्मा ही है – ऐसा भी अभेदरूप से कहा है परन्तु यहाँ अभी पाँच भावों में ध्रुवरूप भाव और परिणामरूप भाव, इन दोनों का स्वरूप समझाकर, उनमें से मोक्ष का कारण कौन है? – यह बतलाना है; इसलिए उन दोनों को कथञ्चित् भिन्न कहा है।
भगवान आत्मा का जो ध्रुवभाव है, वह वर्तमान पर्याय जितना