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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
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-ज्ञान द्वारा जगत के पदार्थों का सूक्ष्म स्वरूप जानकर, आपने उसका उपदेश किया है। ऐसे वस्तुस्वरूप को जाने बिना, वस्तु की सिद्धि अथवा कार्य की सिद्धि नहीं होती है। ध्रुवता और उत्पत्ति -विनाश, दोनों भाववाली एक वस्तु को माने तो ही यथार्थस्वरूप की सिद्धि होती है और तभी मोक्षमार्ग सधता है; इन दोनों में से एक को भी वस्तु में से निकाल डाले तो वस्तु का सच्चा ज्ञान नहीं होता, अर्थात् अज्ञान रहता है; और अज्ञान के द्वारा तो मोक्षमार्ग कैसे सध सकेगा? नहीं सध सकता। इसलिए पहले यथार्थ वस्तुस्वरूप का निर्णय करना चाहिए।
देखो भाई! आत्मा के हित के लिए यह विशिष्ट प्रयोजनभूत वस्तु कही जा रही है। दूसरा तो बाहर का आये या न आये, परन्तु यह आत्मविद्या तो सीखने योग्य है; यह विद्या सीखने से ही जीव का कल्याण है; शेष सब तो व्यर्थ है। ____ * द्रव्य-पर्यायस्वरूप आत्मा; द्रव्य शाश्वत् टिकता है, पर्याय पलटती है।
* पर्याय के नाश से ध्रुवद्रव्य का नाश नहीं होता, वह शाश्वत् रहता है।
* ध्रुव के टिकने के साथ पर्याय नहीं टिकती, वह पलट जाती है।
- ऐसी वस्तु है। उसकी मलिनदशा, वह संसार है; उसका अभाव होकर शुद्धदशा होना, वह मोक्ष है। वह कैसे होता है? ध्रुवस्वभाव पारिणामिकभावरूप शुद्ध ही है, उसके आश्रय से-उसके ध्यान से शुद्धता होती है।