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________________ 152 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा और दूसरा रागरहित. - ऐसे दो नहीं हैं परन्तु शुद्ध आत्मा की भावनारूप एक ही सम्यग्दर्शन है और वह रागरहित ही है। इसी प्रकार मोक्षमार्ग में जो सम्यग्ज्ञान है, वह भी दो प्रकार का नहीं है। शुद्धात्मा की भावनारूप एक ही प्रकार का सम्यग्ज्ञान है तथा मोक्षमार्ग का सम्यक्चारित्र भी दो नहीं है; शुद्ध आत्मा की भावनारूप एक ही चारित्र है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप मोक्षमार्ग, शुद्ध आत्मा की भावना में ही समाहित होते हैं, उनमें कहीं राग नहीं आता है; राग का एक अंश भी मोक्षमार्ग में नहीं समाता है। राग को मोक्षमार्ग मानने की बात तो कहीं रह गयी, यहाँ तो अन्दर निर्मल द्रव्य-पर्याय के बीच की सूक्ष्म बात है। मोक्षमार्ग में क्षायिक आदि भावरूप जो निर्मलपर्याय हुई, वह पर्याय, द्रव्य के साथ सर्वथा अभिन्न नहीं है; कथञ्चित् भिन्न और कथञ्चित् अभिन्न है। यदि दोनों सर्वथा एक ही होवे तो वस्तु में उन दो धर्मों की सिद्धि ही नहीं होगी और एक पर्याय का नाश होने पर, सम्पूर्ण द्रव्य का ही नाश हो जाएगा। मोक्षरूप पूर्ण दशा होने पर मोक्षमार्गरूप अपूर्ण दशा का तो नाश होता है..... परन्तु क्या आत्मद्रव्य का ही नाश हो जाता है ? नहीं, क्योंकि वह पर्याय, द्रव्य के साथ सर्वथा अभिन्न नहीं है। द्रव्य के साथ सर्वथा अभिन्न होवे . तब तो पर्याय का नाश होने पर, द्रव्य भी नष्ट हो जाएगा (परन्तु) ऐसा नहीं होता है; इसलिए द्रव्य-पर्याय को कथञ्चित भिन्नता जानना चाहिए। ... अहो, जङ्गल में बसनेवाले सन्तों ने कितना काम किया है! अन्दर में सिद्ध के साथ गोष्ठी की है.... सिद्ध जैसा अनुभव करके, स्वयं सिद्ध के साधर्मी होकर बैठे हैं.... वाह! ऐसे मोक्षमार्ग
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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