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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
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कारण है; इसलिए उसे मैं अङ्गीकार नहीं करता। शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्ग, राग से अत्यन्त भिन्न है। अब यहाँ वह पर्याय, द्रव्य के साथ भिन्न है या अभिन्न है, यह बतलाना है। वह पर्याय, स्वयं ध्रुवरूप नहीं है, अर्थात् द्रव्य की तरह स्थायी रहनेवाली नहीं है। इस कारण शुद्धात्मद्रव्य से वह कथञ्चित् भिन्न है; सर्वथा भिन्न नहीं है क्योंकि वह अपनी ही पर्याय है। पर्याय, क्षणिक-विनाशी है; इसलिए नित्य शाश्वत् द्रव्य से वह कथञ्चित् भिन्न है। यदि द्रव्य और पर्याय, सर्वथा – एकान्तत: अभिन्न होवे तो पर्याय का नाश होने पर द्रव्य का भी नाश हो जाएगा, वस्तु ही सत् नहीं रहेगी; इसलिए मोक्षमार्ग है, वह पर्यायरूप है - ऐसा सिद्ध करना है और वह पर्याय, मोक्ष का कारण होती है, द्रव्य नहीं - ऐसा बतलाना है। ऐसा होने पर भी ध्येयरूप तो द्रव्य है और उसे ध्याने से पर्याय, शुद्ध हो जाती है, यह बात भी अन्त में बतलायेंगे। ____मोक्षमार्ग है, वह पारिणामिकभाव की भावनारूप है और भावना, पर्याय है; द्रव्य तो कहीं भावनारूप नहीं है। इसलिए यह द्रव्य और पर्याय एकान्ततः अभिन्न नहीं हैं, अर्थात् सर्वथा एक नहीं हैं; दोनों के बीच कथञ्चित् भेद है। द्रव्य है, वह पर्याय नहीं; पर्याय है, वह द्रव्य नहीं। वस्तु' कहने से उसमें द्रव्य और पर्याय दोनों समाहित हो जाते हैं परन्तु द्रव्य और पर्याय दोनों परस्पर सर्वथा एक नहीं हैं। यदि दोनों सर्वथा एक होवें तो वस्तु में द्रव्य
और पर्याय, दो धर्म ही सिद्ध नहीं होते; अथवा पर्याय की तरह द्रव्य भी क्षणिक / नाशवन्त सिद्ध होगा। मोक्षमार्ग भले ही शुद्ध निर्मल वीतरागीभाव है, परन्तु वह पर्यायरूप है; द्रव्यरूप नहीं। यदि मोक्षमार्ग, द्रव्यरूप होवे तो जैसे द्रव्य अनादि-अनन्त है, वैसे