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________________ 148 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा ___यहाँ पर्याय अपेक्षा से मोक्ष का कारण बतलाना है; इसलिए उपशमादि भावों को मोक्ष का कारण कहा है। यह उपशमादि भाव ही निज परमात्मद्रव्य के सन्मुख होकर परिणमित हुए हैं। ___ इस प्रकार पाँच भावों में से मोक्ष के कारण कौन हैं? – यह बतलाया और उनके दूसरे अनेक नामों से भी उनकी पहचान करायी है। ___अब, यह मोक्षमार्गरूप शुद्धपर्याय है, वह शुद्धात्मद्रव्य से एकान्ततः अभिन्न नहीं है, 'कथञ्चित् भिन्न भी है' - यह बात समझायेंगे। शुद्धात्मस्वभाव के सन्मुख होने पर जो मोक्षमार्गरूप पर्याय प्रगट हुई है, वह पर्याय कैसी है? यह कहते हैं - वह पर्याय, शुद्ध पारिणामिकभाव लक्षण शुद्धात्मद्रव्य से 'कथञ्चित् भिन्न है। किसलिए? भावनारूप होने से। शुद्धपारिणामिकभाव तो भावनारूप नहीं है। यदि वह पर्याय, शुद्ध पारिणामिकभाव से सर्वथा अभिन्न होवे तो मोक्ष का प्रसङ्ग बनने पर, जैसे इस भावनारूप मोक्ष कारणभूत पर्याय का विनाश होता है। उसी प्रकार शुद्ध - पारिणामिकभाव भी विनाश को प्राप्त होगा, परन्तु ऐसा तो होता नहीं है क्योंकि शुद्धपारिणामिकभाव तो अविनाशी है; इसलिए द्रव्य और पर्याय को कथञ्चित् भिन्नता जानना चाहिए। शास्त्रकर्ता श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव कहते हैं कि परम साम्यभावरूप शुद्धोपयोग नामक वीतरागचारित्र को मैं अङ्गीकार करता हूँ; बीच में शुभभावरूप कषाय कण आता है, वह बन्ध का
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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