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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
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सन्मुख होकर उसके श्रद्धा-ज्ञान-चारित्ररूप परिणमित हुआ है। यदि बाहर में दूसरे परमात्मा के सन्मुख देखने जाए तो राग का विकल्प उठता है और यदि सूक्ष्म दृष्टि से उनके आत्मा का स्वभाव देखे तो उनके समान अपने परमशुद्धस्वभाव की पहचान हो तो अपने स्वभाव के सन्मुख दृष्टि हो जाए। इस प्रकार जब स्वसन्मुख होकर निज परमात्मद्रव्य का अनुभव करता है, तब उस जीव को औपशमिकादि निर्मलभाव प्रगट होते हैं। उसे शुद्धात्मसन्मुख परिणाम अथवा परमात्मभावना इत्यादि अनेक संज्ञा है। वे भाव, मोक्ष का कारण हैं।
मोक्ष, वह पर्याय है और उसका कारण भी पर्याय है। कभी अभेददृष्टि से अभेदद्रव्य को भी मोक्ष का कारण कहते हैं। यहाँ पारिणामिकभाव को बन्ध-मोक्ष के कारणरहित बतलाना है और
औपशमिक आदि तीन भावों को मोक्ष के कारणरूप बॅतलाना है; इसलिए मोक्ष के कारण-कार्य दोनों पर्यायरूप हैं। अपना जो सहज परमस्वभाव परमपारिणामिकभावरूप कारणपरमात्मा है, उसमें एकाग्र होकर परिणमित होना, वह मोक्षमार्ग है; उस मोक्षमार्ग में शुभराग का प्रवेश नहीं है।शुभराग हो तो भी वह मोक्षमार्ग से बाहर है, अर्थात् बन्धमार्ग में उसका स्थान है। अखण्ड आत्मस्वभाव की सन्मुख के श्रद्धा-ज्ञान-आचरणरूप जो परमार्थ वीतराग मोक्षमार्ग है, उसमें बीच में व्यवहार का या राग का अवलम्बन नहीं है; बीच में राग आवे तो वह मोक्ष के कारणरूप नहीं है परन्तु बन्ध के कारणरूप है, वह उदयभाव है और मोक्षमार्ग तो औपशमिक आदि भावरूप है। ... उदयभाव, अर्थात् विकारभाव, वह बन्धमार्ग का भाव है; वह