________________
132
ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
निमित्त है और आत्मा स्वयं केवलज्ञानरूप परिणमित हुआ, तब उसमें ज्ञानावरण का क्षय निमित्त है। शास्त्र में निमित्त से और व्यवहार से बहुत कथन होते हैं; उनका अर्थ करने की विधि । पद्धति समझना चाहिए। दो द्रव्यों की भिन्नता का लक्ष्य भलीभाँति रखकर, अर्थ समझना चाहिए।
प्रवचनसार गाथा 245 में 'गृहस्थ को शुभराग मुख्य होता है और उसके द्वारा वह मोक्षसुख पाता है' - ऐसा कहा है, वह उपचार से कहा है परन्तु अज्ञानी उसका सच्चा अर्थ नहीं समझकर अकेले राग को ही वास्तव में मोक्ष का कारण मान लेता है। 'शुभराग को मुख्य कहा तो उसी समय गौणरूप से श्रावक को शुद्धात्मानुभव होता है और वह शुद्धात्मा का अनुभव ही मोक्ष का सच्चा कारण है – ऐसा जानना चाहिए। राग कहीं मोक्ष का कारण नहीं है।
यदि शुभराग, श्रावक को मोक्ष का कारण हो जाता हो, तब तो 'तू वीतरागचारित्र को अंगीकार कर'- ऐसा उपदेश ही उसे किसलिए देंगे। इस 254 वीं गाथा में ही आचार्यदेव ने शुभोपयोग को 'शुद्धात्मपरिणति से विरुद्ध' कहा है। उसे कषाय कहा है तो वह मोक्ष का कारण कैसे होगा? गृहस्थ धर्मात्मा को शुद्धात्मानुभूति होती है, उसका उपचार करके, उसके साथ के शुभोपयोग को भी मोक्ष का कारण कहा है परन्तु जिसे शुद्धात्मानुभूति नहीं है, उसे तो शुभराग, उपचार से भी मोक्ष का कारण नहीं कहलाता; इसलिए मोक्ष का वास्तविक कारण तो शुद्धात्मानुभूति ही हुई। इस प्रकार शास्त्र के कथनों का यथार्थ तात्पर्य समझना चाहिए। क्या यथार्थ वस्तुस्वरूप है और क्या उपचार है ? इसे न पहचाने और विपरीत