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________________ 126 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा -ज्ञान-अनुचरणरूप अभेद रत्नत्रयात्मक परमसमाधि में प्रगट होते सर्व प्रदेशों में आह्लादकारी सुख के आस्वादरूप परिणतिसहित - ऐसे निजात्मा में रक्त-परिणत-तल्लीन – उसमें एकाग्रचित्त तन्मय होता है, वह निश्चय से परमोत्कृष्ट ध्यान है। उस ध्यान में स्थित जीवों को जो वीतराग परमानन्द सुख अनुभव में आता है, वही निश्चयमोक्षमार्ग का स्वरूप है। उसे ही दूसरे पर्याय नामों से क्या-क्या कहा जाता है ? वह यहाँ बतलाते हैं। उसका नाम है परमात्म ध्यान नाममाला और यह नाममाला यथासम्भव, सर्वत्र लगाने को कहा है। (1) वही शुद्धात्मस्वरूप है, (2) वही परमात्मस्वरूप है, (3) वही सुखामृत सरोवर के परमहंसस्वरूप है, (4) वही परमब्रह्मस्वरूप है, (5) वही परमविष्णुस्वरूप है,* ( *विष्णु = स्व गुणों में व्यापक) (6) वही परमशिवस्वरूप है* ( *शिव = आत्मकल्याण), (7) वही परमबुद्धस्वरूप है * (*बुद्धस्वरूप = ज्ञानस्वरूप), (8) वही परम जिनस्वरूप है, (9) वही परम स्वात्मोपलब्धिलक्षण सिद्धस्वरूप है, (10) वही निरञ्जनस्वरूप है, (11) वही निर्मलस्वरूप है, (12) वही स्वसम्वेदनज्ञान है, (13) वही परम तत्त्वज्ञान है, (14) वही शुद्धात्मदर्शन है, (15) वही परमावस्थास्वरूप है, (16) वही परमात्मा का दर्शन है, (17) वही परमात्मा का ज्ञान है, (18) वही परमावस्थारूप परमात्मा का स्पर्शन है, (19) वही ध्येयभूत-शुद्ध पारिणामिकभावरूप है, (20) वही ध्यानभावनास्वरूप है, (21) वही शुद्धचारित्र है, (22) वही परम-पवित्र है, (23) वही अन्त:तत्त्व है, (24) वही परमतत्त्व है, (25) वही शुद्धात्मद्रव्य है, (26) वही
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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