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________________ 124. ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा भान होने पर, वह व्यक्त होकर परिणमित हुआ। मोक्ष की जो योग्यता थी, वह कार्यरूप होने लगी।अब अल्प काल में सिद्धदशा प्रगट हो जाएगी। शक्तिरूप से सिद्धपना तो समस्त जीवों में है, उसका स्वीकार करने से पर्याय में सिद्धदशा हो जाती है। __ जब आत्मा अपने स्वभावसन्मुख परिणमित हुआ, तब वह स्वरूप की लब्धि का काल है। 'कालादि' लब्धि कहने से उसमें स्वसन्मुख पुरुषार्थ भी साथ ही है। ज्ञान, श्रद्धा आदि अनन्त गुणों का कार्य, उस काल में एक साथ वर्तता है - ऐसी मोक्ष की क्रिया है। मोक्ष के कारणरूप भाव, वह पर्याय है और उनके ध्येयरूप पारिणामिकस्वभाव है। अन्तर्मुख होकर अपने सहज शुद्ध परमस्वभावी पारमार्थ तत्त्व की सम्यक् श्रद्धा-ज्ञान-अनुचरण, वह मोक्ष का कारण है; इसके अतिरिक्त शुभराग इत्यादि उदयभाव या शरीर की क्रिया इत्यादि जड़भाव, वह मोक्ष का कारण नहीं है। मोक्ष के कारणरूप शुद्धरत्नत्रयपरिणाम औपशमिक आदि तीन भावरूप होते हैं। उनमें उदयभाव का अभाव है। ऐसी मोक्षमार्गपर्याय को अध्यात्मभाषा से शुद्धात्मसन्मुखपरिणाम अथवा शुद्धोपयोग कहते हैं। उसे दूसरे भी अनेक नामों से कहा जा सकता है। ___ मोक्षमार्ग और मोक्ष - ये पर्यायरूप हैं; द्रव्यरूप नहीं हैं। द्रव्य तो कोई नया करना होता नहीं है, मोक्षपर्याय नयी करनी होती है। मोक्षपर्याय तो क्षायिकभावरूप है, उसके कारणरूप मोक्षमार्ग पर्याय में औपशमिक आदि तीन भाव होते हैं। पारिणामिक परमभाव तो कहीं मोक्षरूप या मोक्षमार्गरूप नहीं हैं। मोक्षदशा न हो तब, या मोक्षदशा हो तब – दोनों समय पारिणामिकस्वभाव से देखने पर आत्मा एकरूप है।
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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