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________________ 122 ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा यह अपूर्ण दशा है और मोक्ष का कारण है। इस उपशमभाव के साथ शुद्धोपयोग होता है। ___* मोक्षमार्ग में क्षायोपशमिकभाव है। यहाँ अनादि की अज्ञानदशा में जो ज्ञानादिक का क्षयोपशमभाव होता है, वह नहीं लेना परन्तु उपशमसम्यक्त्वपूर्वक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र में जो क्षयोपशम -भावरूप निर्मल ज्ञानपर्याय है, वह मोक्षमार्ग है। मोक्षमार्गी जीव को साधकदशा में ऐसा क्षायोपशमिकभाव अवश्य आता है। ___ * क्षायिकभाव है, वह तो कर्म के सर्वथा क्षयरूप सम्पूर्ण शुद्धदशा है, वह मोक्षमार्गरूप है तथा मोक्षरूप है। मोक्षदशा में भी क्षायिकभाव कायम रहता है। * औदयिकभाव तो मलिन परिणाम है, वह कर्म के उदयसहित है। राग-द्वेष-मोह तथा योग का कम्पन, वह उदयभाव है। जितने शुभाशुभभाव हैं, वे सभी उदयभाव में समाहित होते हैं; मोक्ष के कारण में वे नहीं आते। जहाँ तक उदयभाव है, वहाँ तक संसार है। उदयभाव का सर्वथा अभाव होने पर सिद्धदशा प्रगट होती है, वहाँ निमित्तरूप कर्म का सर्वथा क्षय हो जाता है। सिद्धदशा प्रगट न हो, तब तक जीव को 'असिद्धत्व' नामक औदयिकभाव होता है। (ये चार भाव, पर्यायरूप हैं, उनमें कर्म की उदयादि अवस्थाएँ निमित्तरूप हैं; इसलिए ये चार भाव, सापेक्ष हैं।) ___. * पाँचवाँ भाव, शुद्धपारिणामिकभाव है, वह द्रव्यरूप है, उसमें कर्म की अपेक्षा न होने से वह निरपेक्ष है। यद्यपि द्रव्य और पर्याय, दोनों परस्पर सापेक्ष हैं परन्तु 'द्रव्यात्म लाभरूप पारिणामिकभाव' में पर की अपेक्षा नहीं है; इसलिए उसे निरपेक्ष कहा है। ..
SR No.007139
Book TitleGyanchakshu Bhagwan Atma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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