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ज्ञानचक्षु : भगवान आत्मा
काम करने हों, तब ऐसा नहीं कहता कि मुझमें बुद्धि नहीं है किन्तु धर्म समझने की बात आवे, तब कहता है कि हममें बुद्धि नहीं है.... । अरे मूर्ख! पाप में तो तू उत्साह से तेरा उपयोग लगाता है और आत्मा के विचार में उपयोग नहीं लगाता, परन्तु यदि आत्मचिन्तन में उपयोग लगाये तो कौन तुझे रोकता है ? तुझे स्वयं को आत्मा की रुचि नहीं है; इसलिए उसमें तू उपयोग लगाने का प्रयत्न ही नहीं करता। यदि प्रयत्न करे तो अवश्य आत्मा का स्वरूप समझ में आये और उसमें उपयोग लगे। ____ अरे भाई! यह तेरे उद्धार का अवसर आया है; अत: तू अपने आत्मा की दया तो कर! अरे! अज्ञान से संसार में बहुत-बहुत दुःख भोगे, उसमें से छुड़ाने के लिए क्या तुझे तेरे आत्मा की दया नहीं आती? क्या तुझे अभी दुःख की थकान नहीं लगती? तू परिभ्रमण करता हुआ चौरासी के अवतार में दुःखी होता है, तो उसमें से छूटने के लिए अपने सच्चे स्वरूप की पहचान कर। अभी आत्मा के उद्धार का अवसर है।
जिस प्रकार विदेहक्षेत्र के मुनिवरों ने भोगभूमि में जाकर ऋषभदेव के जीव को कहा कि हे भाई! तू अभी ही सम्यक्त्व को ग्रहण कर, अभी ही सम्यक्त्व की लब्धि का काल है। इसी प्रकार यहाँ भी सन्त कहते हैं कि हे भाई! यह आत्मा के कल्याण का महान अवसर आया है, यह अवसर तू चूक मत जाना।
पारिणामिकभाव तो जीव के अतिरिक्त दूसरे द्रव्यों में भी है परन्तु यहाँ शुद्धजीव का जीवत्व बतलाना है; इसलिए जीव के परमभाव की बात है। जीव का जीवन जो चैतन्यभावप्राणरूप त्रिकाल है, वह पारिणामिकभावपने सदा एकरूप है; वह स्वयं