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उपादान-निमित्त की स्वतन्त्रता
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तो पर को उसका निमित्त कहा गया है, कार्य के बिना किसी को उसका निमित्त नहीं कहा जाता। जो कार्य हो चुका है, उसमें निमित्त क्या करेगा? और कार्य के बिना निमित्त किसका? कुम्हार किसका निमित्त है ? यदि घड़ारूपी कार्य हो तो कुम्हार उसका निमित्त हो और यदि कार्य ही न हो तो किसी को घड़े का निमित्त' कहा ही नहीं जा सकता। जब घड़ा बनता है, तभी कुम्हार को निमित्त कहा जाता है, तो फिर कुम्हार ने घड़े में कुछ भी किया - यह बात स्वयमेव असत्य सिद्ध हो जाती है।
प्रश्न – उपादान में कार्य न हो तो परद्रव्य को निमित्त नहीं कहा जाता, यह बात ऊपर कही गई है परन्तु इस जीव को अनन्त बार धर्म का निमित्त मिला, तथापि जीव स्वयं धर्म को नहीं समझ पाया' - ऐसा कहा जाता है और उसमें जीव के धर्मरूपी कार्य नहीं हुआ तो भी परद्रव्यों को धर्म का निमित्त तो कहा है ? ।
उत्तर - 'इस जीव को अनन्त बार धर्म का निमित्त मिला किन्तु स्वयं धर्म को नहीं समझा' - ऐसा कहा जाता है, यहाँ यद्यपि उपादान में (जीव में) धर्मरूपी कार्य नहीं हुआ; इसलिए वास्तव में उसके लिए तो वे पदार्थ धर्म के निमित्त भी नहीं हैं परन्तु जो जीव धर्म प्रगट करते हैं, उन जीवों को इस प्रकार के ही निमित्त होते हैं - ऐसा ज्ञान कराने के लिए उसे सामान्यरूप से निमित्त कहा जाता है।
अनुकूल निमित्त अमुक पदार्थों को अनुकूल निमित्त कहा है; इसलिए यह नहीं समझना चाहिए कि उसके अतिरिक्त अन्य पदार्थ प्रतिकूल हैं। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के लिए अनुकूल या प्रतिकूल है ही नहीं। निमित्त