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वस्तुविज्ञानसार .
को अनुकूल कहने का अर्थ इतना ही है कि कार्य के होते समय उस पदार्थ में निमित्तरूप होने की योग्यता है; इसलिए उस पर अनुकूलता का आरोप आ सकता है।
दो पर्यायों की योग्यता एक समय में नहीं होती एक समय में दो पर्याय की योग्यताएँ कदापि नहीं होती। जिस समय जैसी योग्यता है, वैसी पर्याय प्रगट होती है और उसी समय यदि दूसरी योग्यता भी हो तो एक ही साथ दो पर्यायें हो जाएँ, परन्तु ऐसा कभी नहीं हो सकता। जिस समय जो पर्याय प्रगट होती है, उस समय दूसरी पर्याय की योग्यता नहीं होती। आटारूप पर्याय की योग्यता के समय रोटीरूप पर्याय की योग्यता नहीं होती, तब फिर इस बात को अवकाश ही कहाँ है कि निमित्त नहीं मिला इसलिए रोटी नहीं बनी? और जब रोटी बनती है, तब उससे पूर्व की आटारूप पर्याय का अभाव करके ही बनती है, तब फिर दूसरे को उसका कारण कैसे कहा जा सकता है? हाँ, जो परमाणु आटारूप पर्याय से व्यय हुआ, उसे रोटीरूप पर्याय का कारण कहा जा सकता है।
'जीव पराधीन है' इसका क्या अर्थ है ? प्रश्न – समयसार नाटक में स्याद्वाद अधिकार के ९ वें . काव्य में जीव को पराधीन कहा है। शिष्य पूछता है कि हे भगवन् ! जीव पराधीन है या स्वाधीन? तब श्रीगुरु उत्तर देते हैं कि द्रव्यदृष्टि से जीव स्वाधीन है और पर्यायदृष्टि से पराधीन है। वहाँ जीव को पराधीन क्यों कहा है ?
उत्तर - पर्यायदृष्टि से जीव पराधीन है अर्थात् जीव स्वयं अपने स्वभाव का आश्रय छोड़कर परलक्ष्य द्वारा स्वयं स्वतन्त्ररूप