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वस्तुविज्ञानसार
जाए क्योंकि सम्यक नियतवाद का निर्णय किया कि स्वयं सबका मात्र ज्ञानभाव से ज्ञाता-दृष्टा रह गया और पर का या राग का कर्ता नहीं रहा।
जब स्वचतुष्टय में परचतुष्टय की नास्ति ही है तो फिर उसमें पर क्या करें? जब उपादान-निमित्त का यथार्थ निर्णय हो जाता है, तब पर का कर्त्तत्वभाव उड़ जाता है और वीतरागदृष्टिपूर्वक वीतरागी स्थिरता का प्रारम्भ हो जाता है। अज्ञानीजन इस नियतवाद को एकान्तवाद और गृहीतमिथ्यात्व कहते हैं किन्तु ज्ञानीजन कहते हैं कि यह सम्यक् नियतवाद ही अनेकान्तवाद है और इसके निर्णय में जैनदर्शन का सार आ जाता है तथा यह केवलज्ञान का कारण है।
कुछ अकस्मात् है ही नहीं प्रश्न - सम्यग्दृष्टि के अकस्मात् भय नहीं होता, इसका क्या कारण है?
उत्तर – सम्यग्दृष्टि को यथार्थ नियतवाद का निर्णय है कि जगत् के समस्त पदार्थों की अवस्था उनकी योग्यतानुसार ही होती है। जो न होना हो - ऐसा कुछ होता ही नहीं; इसलिए कुछ अकस्मात् है ही नहीं, इस निःशङ्क श्रद्धा के कारण सम्यग्दृष्टि को अकस्मात् भय नहीं होता। वस्तु की पर्यायें क्रमशः ही होती हैं, अज्ञानी को इसकी प्रतीति नहीं है; इसलिए उसे अकस्मात् भय रहता है और कर्त्तत्वबुद्धि रहती है।
निमित्त किसका? और कब? यदि निमित्त के यथार्थ स्वरूप को समझे तो यह मान्यता दूर हो जाए कि निमित्त, उपादान में कुछ करता है, क्योंकि जब कार्य है, तब