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________________ उपादान-निमित्त की स्वतन्त्रता 79 त्याग होता है तो भी वस्त्र का त्याग उन परमाणुओं की अवस्था की योग्यता है, उसका कर्ता आत्मा नहीं है। प्रश्न – यदि किसी मुनिराज के शरीर पर कोई व्यक्ति वस्त्र डाल जाए तो उस समय उनके चारित्र का क्या होगा? . उत्तर - किसी दूसरे जीव के द्वारा वस्त्र डाला जाए यह तो उपसर्ग है; इससे मुनि के चारित्र में कोई बाधा नहीं आती, क्योंकि उस वस्त्र के साथ उनके चारित्र का निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध नहीं है; वस्तुत: वहाँ तो वस्त्र ज्ञान का ज्ञेय है अर्थात् ज्ञेय-ज्ञायकपने का निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। सम्यक् नियतवाद क्या है? वस्तु की पर्याय क्रमबद्ध जिस समय जो होनी हो, वही होती है - ऐसा 'सम्यक् नियतिवाद' जैनदर्शन का वास्तविक स्वभाव है - यही वस्तुस्वभाव है। 'नियत' शब्द शास्त्रों में अनेक जगह आता है किन्तु नियत का अर्थ है निश्चित-नियमबद्ध; वह एकान्तवाद नहीं किन्तु वस्तु का यथार्थ स्वभाव है, यही अनेकान्तवाद है। सम्यनियतवाद का निर्णय करते समय, बाह्य में राजपाट का संयोग हो तो वह छूट ही जाना चाहिए - ऐसा नियम नहीं है किन्तु उसके प्रति यथार्थ उदासभाव अवश्य हो जाता है। बाह्य संयोग में अन्तर पड़े या न पड़े किन्तु अन्तर के निर्णय में अन्तर पड़ जाता है। अज्ञानी जीव नियतवाद की बातें करता है किन्तु ज्ञान और पुरुषार्थ को स्वभावसन्मुख करके निर्णय नहीं करता। नियतवाद का निर्णय करने में जो ज्ञान और पुरुषार्थ आता है, उसे यदि जीव पहिचाने तो स्वभावाश्रित वीतरागभाव प्रगट हो और पर से उदास हो
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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