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________________ वीतरागी सन्तों का उपदेश करके, मोक्षदशा की प्राप्ति कर सकता है। जब आत्मानुभव की ऐसी महिमा है तो मिथ्याभाव का नाश करके सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होना सुलभ ही है; इसलिए श्री परमगुरुओं ने इसी का उपदेश प्रधानता से दिया है।' श्री समयसार-प्रवचनों में आत्मा की पहचान करने के लिए बारम्बार प्रेरणा की गई है, यथा - • चैतन्य के विलासरूप आनन्द को भीतर में देख! अन्तर में उस आनन्द के देखते ही तू शरीरादि के मोह को तत्काल छोड़ सकेगा। 'झगिति' अर्थात् झट से छोड़ सकेगा। यह बात सरल है क्योंकि यह तेरे स्वभाव की बात है। .सातवें नरक की अनन्त वेदना में पड़े हुए जीवों ने भी आत्मानुभव प्राप्त किया है, यहाँ पर सातवें नरक जैसी तो पीड़ा नहीं है न? रे जीव! मनुष्यभव प्राप्त करके रोना क्यों रोया करता है? अब सत्समागम से आत्मा की पहचान करके आत्मानुभव कर! इस प्रकार समयसार-प्रवचनों में बारम्बार-हजारों बार आत्मानुभव करने की प्रेरणा की है। जैनशास्त्रों का ध्येय बिन्दु ही आत्मस्वरूप की पहिचान कराना ही है। 'अनुभवप्रकाश' ग्रन्थ में आत्मानुभव की प्रेरणा करते हुए कहा है कि कोई यह जाने कि आज के समय में स्वरूप की प्राप्ति कठिन है तो समझना चाहिए कि वह स्वरूप की चाह को मिटानेवाला बहिरात्मा है...। जब फुरसत होती है, तब विकथा करने लगता है, उस समय यदि वह स्वरूप की चर्चा-अनुभव करे तो उसे कौन रोकता है ? यह कितने आश्चर्य की बात है कि वह परपरिणाम
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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