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________________ प्रकरण - 2 वीतरागी सन्तों का उपदेश आत्मस्वरूप की यथार्थ समझ सुलभ अपना आत्मस्वरूप समझना सुगम है, किन्तु अनादि से स्वरूप के अनाभ्यास के कारण कठिन मालूम होता है। यदि कोई यथार्थ रुचिपूर्वक समझना चाहे तो वह सरल है। 7 कोई कितना ही चतुर कारीगर हो, तथापि वह दो घड़ी में मकान तैयार नहीं कर सकता किन्तु यदि आत्मस्वरूप की पहचान करना चाहे तो वह दो घड़ी में भी हो सकती है । आठ वर्ष का बालक अनेक मन का बोझ नहीं उठा सकता, किन्तु यथार्थ समझ के द्वारा आत्मा की प्रतीति करके केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है। स्व -परिणमन में आत्मा सम्पूर्ण स्वतन्त्र है किन्तु पर में कुछ भी करने के लिए आत्मा में किञ्चित्मात्र सामर्थ्य नहीं है । आत्मा में इतना अपार स्वाधीन पुरुषार्थ विद्यमान है कि यदि वह उल्टा चले तो दो घड़ी में सातवें नरक जा सकता है और यदि सीधा चले तो दो घड़ी में केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्ध हो सकता है । परमागम श्रीसमयसारजी में कहा है कि - 'यदि यह आत्मा दो घड़ी के लिए अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को पुद्गलद्रव्य से भिन्न अनुभव करे अर्थात् उसमें लीन हो जाए; परीषहों के आने पर भी नहीं डिगे तो चार घातिया कर्मों का नाश करके, केवलज्ञान को प्राप्त
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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