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________________ सम्पादकीय परम पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी के अध्यात्मरसपूर्ण मङ्गल प्रवचनों का यह सम्पादित संस्करण 'वस्तुविज्ञानसार' सद्धर्मप्रेमी साधर्मीजनों को समर्पित करते हुए अत्यन्त हर्ष हो रहा है। पूज्य गुरुदेव श्री ने इन प्रवचनों में वस्तुविज्ञान के अद्भुत रहस्य क्रमबद्धपर्याय, निमित्तोपादान की स्वतन्त्रता, कार्य के नियामक कारणरूप तत्समय की योग्यता, क्रिया के प्रकार, अज्ञानी के जीवन में पाये जानेवाले व्यवहार के सूक्ष्म पक्ष और उसके अभाव के उपाय का तथा वस्तु के सामान्य विशेषरूप अंशों की स्वतन्त्रता का विशद् प्रतिपादन किया है। यह तो सर्व विदित है कि पूज्य गुरुदेवश्री ने अपने पैंतालीस वर्षीय आध्यात्मिक जीवन में जिन प्रमुख सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, उनमें से क्रमबद्धपर्याय और निमित्तोपादान की स्वतन्त्रता सर्वाधिक चर्चित रहे हैं। आज सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज में इन विषयों की गहरी तत्त्वचर्चा का एकमात्र श्रेय पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी को ही जाता है । मुझे इन प्रवचनों के प्रति विशेष बहुमान इस कारण भी है क्योंकि क्रमबद्धपर्याय पर हुए प्रवचन ‘ज्ञानस्वभाव - ज्ञेयस्वभाव' से ही मेरे जीवन में आध्यात्मिक मोड़ आया है। यद्यपि इन प्रवचनों का प्रकाशन सोनगढ़ ट्रस्ट से हिन्दी एवं गुजराती भाषा में अनेक बार हुआ है, परन्तु वर्तमान में काफी समय से हिन्दी में
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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