SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुचिरूप परिणमित होकर उसमें लीन होंगे, वे अवश्य शाश्वत् परमानन्ददशा को प्राप्त होंगे। जो जीव शारीरिक क्रियाकाण्ड में या बाह्यप्रवृत्तियों में धर्म का अंश भी मानते हों, जो शुभभावों में धर्म मानते हों, शुभभाव को धर्म का किञ्चित्मात्र कारण मानते हों और जो जीव निर्णय के बिना ही मात्र शास्त्रों की धारणा से धर्म मानते हों, वे सभी प्रकार के जीव इस पुस्तक में कहे गये परम प्रयोजनभूत भावों को जिज्ञासुभाव से शान्तिपूर्वक गम्भीरतया विचार करें और अनन्तकाल से चली आनेवाली मूलभूत भूल को वस्तुस्वभाव के अपूर्व सम्यक् पुरुषार्थ से दूर कर निजकल्याण करें, इसी में मानवजीवन की सफलता है। रामजी माणेकचन्द दोशी मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा अध्यक्ष वीर संवत् 2474 श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट. सोनगढ़ (सौराष्ट्र)
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy