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________________ (11) इनकी अनुपलब्धता के कारण इन्हें सम्पादित कर प्रकाशित किया जा रहा है। इनके सम्पादन में जो-जो कार्य किया गया है, वह इस प्रकार है - • सम्पूर्ण प्रवचनों को गुजराती के साथ अनुवाद की दृष्टि से मिलाकर, आवश्यक संशोधन किये गये हैं। • लम्बे-लम्बे गद्यांशों को छोटा किया गया है। • भाषा को सरल-प्रवाहमयी बनाने का यथासम्भव प्रयास किया गया है। • पूर्व संस्करण के हेडिंग में कुछ परिवर्तन किया गया है। जैसे - क्रिया के तीन प्रकार, जबकि इसका पूर्व हेंडिग था 'क्रिया, जड़ की संसार की व मोक्ष की' - इसी प्रकार अन्यत्र समझ लेना चाहिए। ___इन सभी कार्यों के शक्तिप्रदाता परम उपकारी पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी ही हैं, उनका ही सबकुछ इस ग्रन्थ में है। साथ ही मुझे पूज्य गुरुदेवश्री के प्रति भक्ति उत्पन्न कराने में निमित्तभूत मेरे विद्यागुरु एवं पूज्य गुरुदेवश्री के अनन्यभक्त पण्डित श्री कैलाशचन्दजी, अलीगढ़ हैं, जिनके पावन चरणों में रहकर, मुझे तत्त्वज्ञान सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है। मेरे जीवनशिल्पी इन दोनों महापुरुषों के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। इस ग्रन्थ के सम्पादन कार्य का अवसर प्रदान करने हेतु तीर्थधाम मङ्गलायतन के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। सभी आत्मार्थीजन गुरुदेवश्री की इस महा मङ्गलवाणी का अवगाहन करके अनन्त सुखी हों - इस पावन भावना के साथ। तीर्थधाम मङ्गलायतन देवेन्द्रकुमार जैन दिनाङ्क 09 नवम्बर 2007
SR No.007138
Book TitleVastu Vigyansar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Devendrakumar Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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