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________________ समयसार - एक विवेचन समय पाहुड़ अर्थात समय प्राभृत ग्रंथ जो सम्यक् समीचीन अय बोध ज्ञान है, जिसके वह समय अर्थात आत्मा । समयसार नाम तो परमात्मा का है । ― समय अर्थात आत्मा, प्राभृत (सार) अर्थात शुद्धावस्था । इस ग्रंथ मे आचार्य श्री ने तीन बातें बताई हैं : १. आराध्य - आराधक भाव की उपयोगिता २. वाणी प्रमाणिकता ३. अपने आपका ग्रंथ कर्तव्य । आराधक हो हम लोग छद्मस्थ कहते हैं। आराध्य तो श्री सिद्ध भगवान है, उनकी आराधना करके हम लोग अपने कर्मों नष्ट कर सकते हैं । आराधना दो प्रकार की है १. निश्चय आराधना २. व्यवहार आराधना । समय शब्द का अर्थ जीव बताया गया है। वह मूल में दो प्रकार का है - १. स्व समय २. पर समय । स्वसमय अर्थात मुक्त जीव और पर समय अर्थात संसारी जीव । जो दर्शन ज्ञान और चारित्र में स्थित होकर रहता है वह स्व समय (मुक्त जीव) है । जो पौदगलिक कर्म प्रदेशों में स्थित होकर रहता है वह परसमय (संसारी जीव) है। काम, बन्ध और भोग की कथा तो सभी जीवों के सुनने में आई हैं लेकिन एकाकी अर्थात एकत्व - विभक्त अर्थात सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र के साथ एकता को लिये हु अपने आपके अनुभव में आने योग्य शुद्धात्मा का स्वरूप है जो रागादि से रहित एकत्व का जो न तो कभी सुना गया और न अनुभव में ही आया । जो प्रमत्त और अप्रमत्त इन दोनों अवस्थाओं से ऊपर उठकरं केवल ज्ञायक स्वभाव को ग्रहण किये हुए है वह शुद्धात्मा है । 28 m ॐ
SR No.007137
Book TitleNischay Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharat Pavaiya
PublisherBharat Pavaiya
Publication Year2007
Total Pages32
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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