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________________ . जैन न्यायशास्त्र न्याय शब्द का अर्थ - उचित निर्णय, तर्क युक्त कथन, युक्ति शास्त्र, आत्मानुभूति, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र, इमानदारी, सत्य पर आधारित आत्मा को वास्तव में जानना (अनुभव करना) होता है। अंगप्रविष्ट भाषा (निश्चय) से 'ऊँ'' शुद्धात्मा का वाचक है। . अंगबाह्य भाषा (व्यवहार) से 'ऊँ''पंच परमेष्ठीका वाचक है। न्याय ग्रंथ :- में पर मत का खण्डन और स्वमत का मण्डन है। न्याय :- निश्चय नय से आत्म वैभव को जानना "न्याय' है। एकयुग से इसको अकलंक न्याय कहा जाने लगा। __न्याय ग्रंथ/सिद्धांत शास्त्रों का महल, जिस पर आधारित हे वह है आचार्य कुन्दकुन्द के पट शिष्य आचार्य उमास्वामी रचित तत्त्वार्थ सूत्र के प्रथम अध्याय का ६ वां सूत्र "प्रमाण नयैरधिगम'' | इसका अर्थ-पदार्थों का ज्ञान-प्रमाण और नयों से होता है । जैन न्याय ग्रंथों को उत्तमोत्तम दिगम्बर आचार्यों ने पल्लवित किया है। इन्हींन्याय ग्रंथों की छटा हमें आचार्यवर श्री कुन्दकुन्द के परमागमों की टीका करने वाले आचार्य श्री अमृतचन्द्र एवं श्री जयसेनाचार्य की "आत्मख्याति", "तत्त्वप्रदीपिका' और "तात्पर्यवृत्ति" आदि टीकाओं में स्थान पर परीलक्षित होती है। इस प्रकार 'न्याय'' के आधार से समस्त कथनों की सिद्धि पगपगपर दिखाई देती है। 27
SR No.007137
Book TitleNischay Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharat Pavaiya
PublisherBharat Pavaiya
Publication Year2007
Total Pages32
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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