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मङ्गल अवसर यह पञ्च-कल्याणक महोत्सव तीन लोक के जीवों में आनन्द की अनुभूति होने का महा-मङ्गलमय अवसर है। इस महा-महोत्सव में वीतरागी परमात्मा का मङ्गल सन्देश प्रसारित होता है; यह महोत्सव सभी जीवों के कल्याण में परम निमित्त होता है; परम सत्य दिव्यध्वनि में जीवों के परिणामोंरूप पाँच भावों की सुमधुर चर्चा सुनने-समझने का अवसर मिलता है।
इस महोत्सव में जीव के परिणामों का अद्भुत चमत्कार प्रत्यक्ष देखने को मिलता है, यथा - उत्कृष्ट शुभपरिणामों में अर्थात् सोलह कारण भावनापूर्वक जीव तीर्थङ्कर होता है और निर्मल वीतराग परिणति से जीव, परमात्मा हो जाता है; अनन्त चतुष्टय प्रकट होकर नव केवल लब्धियों का अद्भुत, अनुपम, सर्वोत्कृष्ट रस भोगता है; सादि-अनन्त सुख की दशा में अनुपम अतीन्द्रिय सुख का भोक्ता होता है।
जगत के जीव तो संयोग देखते हैं । संयोग से और संयोगीभाव से भी भिन्न अन्दर चेतन की निर्मलपरिणति और निर्मलरस के समुद्र भगवान आत्मा का दर्शन कैसे हो? यह भी इसी पञ्च-कल्याणक महोत्सव से पता चलता है।
अनादि से ही अशुद्धभावों में रचा-पचा जीव, इस महोत्सव में शुद्धभाव के मङ्गल गीत सुनता है; शुद्धभाव से परिचित होता है; परम पवित्र रत्नत्रय के मार्ग में स्वयं को लगाने के लिए प्रयत्नशील होता है।
स्वर्ग के देवों का अद्भुत उल्लास, अनुपम उत्साह, अपार उमङ्ग, उत्कृष्ट जिनेन्द्रभक्ति, विशिष्ट विनम्रता और स्वयं के कल्याण की -