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प्रश्न 21 - नान्दी-विधान तथा इन्द्र-प्रतिष्ठा की विधि क्यों करायी जाती है?
उत्तर - 'नान्दी-विधान' - यह पञ्च-कल्याणक प्रतिष्ठा का प्रारम्भिक मङ्गलाचरण माना गया है। इसके माध्यम से 'मङ्गल -कलश-स्थापना' के बाद भगवान के माता-पिता बननेवाले सद्गृहस्थों का गोत्र परिवर्तन कराया जाता है तथा उन्हें आचरण सम्बन्धी योग्य नियमों की जानकारी दी जाती है। इसी प्रकार ‘इन्द्र -प्रतिष्ठा' के माध्यम से इन्द्र-इन्द्राणी बननेवाले गृहस्थों की इन्द्र -इन्द्राणियों के रूप में स्थापना की जाती है। इस विधि का इतना प्रभाव है कि सम्पूर्ण प्रतिष्ठाकाल में इन्द्र-इन्द्राणियों तथा माता -पिता को सूतक-पातक आदि नहीं लगते। इन्द्र-इन्द्राणियों तथा माता-पिता के इस रूप की जानकारी नगर की समग्र जनता को होवे - इस निमित्त से इन्द्र-शोभायात्रा निकाली जाती है।
प्रश्न 22 - यागमण्डल-विधान क्यों कराया जाता है?
उत्तर - यागमण्डल विधान में पञ्च परमेष्ठी, जिनप्रतिमा, जिनमन्दिर, जिनवाणी (शास्त्र) और जिनधर्म - इन नव देवताओं की पूजन की जाती है । इस पूजन के माध्यम से समस्त देव-शास्त्र -गुरु का आह्वान किया जाता है तथा पूजन-विधान के माध्यम से यह भावना की जाती है कि देव-शास्त्र-गुरु! हम आपके सान्निध्य में यह पञ्च-कल्याणक प्रतिष्ठा करना चाहते हैं, कृपया आप हमें आशीर्वाद देवें कि हम शुद्ध मन-वचन-काय से यह महान कार्य सम्पन्न करें।
प्रश्न 23 - पाण्डुकशिला का क्या महत्त्व है?
उत्तर - जन्मकल्याणक के अवसर पर जब सौधर्म इन्द्र अपने समग्र देवता परिवार के साथ जन्मकल्याणक का उत्सव मनाने
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