________________
श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/८२
उज्ज्वल अक्षत धवल ज्ञानमय लाया स्वामी। अक्षय पद की प्राप्ति करूँगा अन्तर्यामी॥ अन्तराय की पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता।
सिद्ध महान वीर्य गुणधारी संकटहर्ता॥ ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि.।।
पुष्प सुगन्धित भावमयी चरणों में अर्पित। कामबाण की पीड़ा नाचूँगा प्रभु निश्चित॥ अन्तराय की पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता।
सिद्ध महान वीर्य गुणधारी संकटहर्ता॥ ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि./
क्षुधा व्याधि हर सहज ज्ञान चरु मैं लाऊँगा। परम तृप्ति दायक शाश्वत पद निज पाऊँगा। अन्तराय की पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता।
सिद्ध महान वीर्य गुणधारी संकटहर्ता॥ ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.।
महा-मोहतम-नाशक ज्योति दीप लाऊँगा। स्वपर-प्रकाशक केवलज्ञान शीघ्र पाऊँगा। अन्तराय की पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता।
सिद्ध महान वीर्य गुणधारी संकटहर्ता ॥ ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपंनि.।
ध्यान-धूप की दिव्यगन्ध प्रभु उर में पायो। वसु कर्मों को क्षय करने की बेला आयी॥ अन्तराय की पाँच प्रकृतियों के क्षयकर्ता।
सिद्ध महान वीर्य गुणधारी संकटहर्ता ॥ | ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं नि.।